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रचयिता : अर्चना मंडलोई
थैक्यू माँ …. ओह! माँ तुम पास हो गई। कितनी खुश हो तुम आज मेरा रिजल्ट देखकर। टीचर जी ने तुम्हें मिठाई खिलाते हुए बधाई दी तो तुम रो ही पडी थी।
मैं पास खडा, ये सब देख रहा था, और मन ही मन ईश्वर को शुक्रिया कह रहा था – यहाँ धरती पर तुम जैसी माँ जो मिली है, मुझे संभालने के लिए।
मुझे पता है, माँ मैं उन आम बच्चों में शामिल नहीं हूँ, जिसे दुनिया नार्मल कहती है। और तुम भी दुनिया की तमाम माँ के समान ही हो। पर माँ मेरे साथ तुम भी खास हो गई हो।
मैं जानता हूँ माँ हर रोज तुम मेरे स्कूल के गेट पर छुट्टी होने के समय से पहले ही खडी रहती हो। दौडते भागते बच्चों को हसरत भरी निगाहों से देखते हुए, मैं जानता हूँ उन बच्चों में तुम मुझे खोजती हो।
वैसे तो माँ तुमने कभी किसी से मेरी तुलना नहीं की, फिर भी मेरी क्लास के टापर्स बच्चों की तुम खुशामद करती हो और उनसे काँपी लेकर मेरा होमवर्क करवाती हो, क्योकि मैं उन बच्चों की तरह नहीं लिख पाता हूँ।
अन्य बच्चों से थोडा धीरे ही सही पर माँ मैं सीख रहा हूँ, तुमसे कि अक्षमता मजबूत इरादों को नहीं रोक सकती। माँ तुम सीखा रही हो कि परिस्थितियों को स्वीकार कर उम्मीद के साथ हर मुश्किल का हल निकाला जा सकता हैं।
माँ आज तुम्हारी आँखों से जब आँसू बहने लगे थे, तब मेरा मन व्यथीत हो गया था, पर माँ मैं क्या करता ! मै चाह कर भी तुम्हें सांत्वना नहीं दे सका। मेरे पास इतनी समझ होती तो मैं नार्मल बच्चों की श्रेणी में नहीं आ जाता?
माँ मैं इतना अवश्य जान गया कि वे खुशी के आँसू थे, मुझे लेकर तुम्हारे अथक् परिश्रम का परिणाम हैं।
माँ तुम मुझे माफ तो करोगी ना? मैं उन खांचों में फीट नहीं हूँ जिन्हें दुनिया होशियार कहती है। दूसरे मुझे क्या कहते है, ऊससे मुझे कोई मतलब नहीं है! बस मुझे तुम्हारी फीक्र है, तुम्हारे प्यार से बढकर मेरे लिए कुछ भी नहीं हैं।
मुझे तो इस रिजल्ट में केवल पास लिखा हुआ ही समझ में आया हैं, ये सारे नंबर माँ तुम्हारे ही है।
थैक्यू माँ तुम पास हो गई।
लेखिका परिचय : इंदौर निवासी अर्चना मंडलोई शिक्षिका हैं आप एम.ए. हिन्दी साहित्य एवं आप एम.फिल. पी.एच.डी रजीस्टर्ड हैं, आपने विभिन्न विधाओं में लेखन, सामाजिक पत्रिका का संपादन व मालवी नाट्य मंचन किया है, आप अनेक सामाजिक व साहित्यिक संस्थाओं में सदस्य हैं व सामाजिक गतिविधियों मे संलग्न।
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