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गीत

गीत

रचयिता : मोहम्मद सलीम रज़ा

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हँस दे तो खिले कलियाँ गुलशन में बहार आए
वो ज़ुल्फ़ जो लहराएँ मौसम में निखार आए
oo
मदहोश हुआ दिल क्यूँ बेचैन है क्यूँ आँखें
रंगीन ज़माना क्यूँ महकी हुई क्यूँ सांसें
हूँ दूर मय-ख़ाने से फिर भी क्यूँ ख़ुमार आए
oo
बुलबुल में चहक तुम से फूलों में महक तुम से
तुम से ये बहारे हैं सूरज में चमक तुम से
रुख़्सार पे कलियों के तुम से ही निखार आए
oo
बस इतनी गुज़ारिश है बस इतनी सी चाहत है
जिन जिन पे इनायत है जिन जिन से मोहब्बत है
उन चाहने वालो में मेरा भी शुमार आए
oo
गुलशन में बहारों की इक सेज लगाया है
फूलों को सजाया है पलकों को बिछाया है
ऐ बाद-ए-सबा कह दे अब जाने बहार आए
oo
मिल जाए कोई साथी हर ग़म को सुना डालें
जीवन के हर इक लम्हें खुशिओं से सजा डालें
बेचैन ‘रज़ा’ दिल है पल भर को क़रार आए

परिचय :- नाम – मोहम्मद सलीम रज़ा
शायरी नाम – सलीम रज़ा रीवा
तख़ल्लुस – ”रज़ा”
जन्म स्थान – मध्य प्रदेश का रीवा ज़िला
जन्म दिन – 15.07.1975
तालीम – उर्दू में स्नातक
नौकरी – ब्रान्च मैनेजर लाइफ़ इन्सुरेंस
रचना प्रकाशन – कई पत्र पत्रिकाओं में रचना प्रकाशित
रचना पाठ – आकाशवाणी में कई प्रकाशन, दूरदर्शन में रचना प्रसारण, कई मुशायरे एवं कवि गोष्ठी में रचना पाठ
रचना विधा – गीत, ग़ज़ल, क़तआत, नात – ए – मुबारिक, हम्द
उपलब्धि – महकते हुए फूल
प्रकाशन के लिए तैयार – गुलशन -ए -रज़ा

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