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लोहड़ी मकर संक्रांति का सामाजिक पहलू

केशी गुप्ता
(दिल्ली)

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भारतीय संस्कृति में त्योहारों का अपना एक विशेष महत्व है। जिनको धार्मिक नजर से देखा जाता है परंतु हर त्यौहार को मनाने का सबसे बड़ा सामाजिक कारण समाज को बांधना और जोड़ना है।  यदि हम किसी भी त्योहार को सामाजिक दृष्टि से देखें तो एक दूसरे से गले मिलना ,साथ बैठना ,मिलकर उत्साह से खुशी मनाना तथा नाचना गाना ,खाना-पीना यह सभी हर त्यौहार का हिस्सा होते हैं। भारत जो एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र है इसमें भिन्न-भिन्न तरह के त्योहार मनाए जाते हैं। लोहड़ी का त्यौहार  देशभर में  मनाया जाता है। लोहड़ी  मकर संक्रांति पोंगल इत्यादि अलग-अलग नामों से यह त्यौहार भिन्न-भिन्न राज्य और धर्म के हिसाब से  मनाया जाता है। यूं तो  लोहड़ी मकर संक्रांत का महत्व सर्दी के खत्म होने और सूर्य के स्थान बदलने  का  सूचक माना जाता है। संक्रांति के दिन बहुत से लोग सूर्य की पूजा कर पवित्र नदियों में स्नान करने के लिए भी जाते हैं।
पंजाब और अन्य कृषि क्षेत्रों के नजरिए से यह नई फसलों के  बोने की शुरुआत मानी जाती है। इस दिन लोग घरों के बाहर सड़कों पर लकड़ियां इकट्ठी कर जगह-जगह बोनफायर लगाते हैं और गली  मोहल्ले के सभी लोग मिलकर  साथ अग्नि की पूजा कर  साथ बैठ आग सेकते  हैं तथा मूंगफली  तिल गजक इत्यादि का सेवन करते हैं। लोहड़ी के कहीं लोकगीत भी प्रचलित हैं जिसमें अत्याधिक दुल्ला भट्टी वाला लोकगीत शामिल है। कहते हैं कि दुल्ला भट्टी  जो गरीबों का रॉबिनहुड था ने एक बार एक लड़की को अज्ञात लोगों से बचाव  कर बेटी का दर्जा दिया तथा संक्रांत के दिन उसकी शादी  कर उसे उपहारों सहित विदा किया  तब से लोहड़ी का त्यौहार धूमधाम से मनाया जाता है और लोग दुल्ला भट्टी से संबंधित लोक गीत गाते हैं। पहले इस त्यौहार पर बच्चे घर घर जाकर  लोहड़ी से संबंधित लोकगीत गाकर मोहल्ले के लोगों से खाने पीने का सामान तथा यथाशक्ति रूपए पैसे मांगने जाया करते थे। परंतु अब यह प्रथा  लुप्त हो गई है। यदि हम इस प्रथा पर विचार करें तो यह समाज को एक दूसरे से जोड़ता था और एक दूसरे की मदद करना सिखाता था जिससे जरूरतमंद की मदद हो सके।
गली चौराहों पर लकड़ी जलाने  के पीछे भी समाज को बांधने का ही प्रयोजन है  ताकि ना सिर्फ गली मोहल्ले के लोग बल्कि आने जाने वाले यात्री तथा जरूरतमंद लोग भी  सर्द रात में आग  सेक अपना सर्दी से बचाव कर सकें साथ ही तेल  मूंगफली  इत्यादि का सेवन कर राहत प्राप्त कर सकें। यदि हम त्योहारों के धार्मिक पहलू से अधिक सामाजिक पहलू पर विचार विमर्श करना शुरू कर दें तो शायद गिरती हुई मानवता को बचाया जा सकता है।

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परिचय :- केशी गुप्ता लेखिका, समाज सेविका
निवास – द्बारका, दिल्ली


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