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तो सुख सदा समाय

अर्चना अनुपम
जबलपुर मध्यप्रदेश

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दर्शन-
टूटते घर और जिम्मेदार बहु। जी खूब कही। माता पिता की नाज़ो पली आपके लिए बिल्कुल ना भली। सोचा है इसका कारण कभी? कारण क्या है अचानक उसके लक्ष्मी से दुर्गा बन जाने के? कली जो थी फूल की उसके अंगारे बन जाने के? आपका बुढ़ापा बिगड़ जाने से लेकर वृद्धाश्रम की दहलीज़ तक पहुंचा दिए जाने के।
बेटी हमेशा सुकुमार, नादान, चंचल चित्त युक्त सुंदर शालीन युवती वाचाल, चपला है। बहु स्वर्ग से उतरी महान वुभूति सब उलूल-जुलूल सहने वाली अच्छी, सभ्य, संस्कारी घूँघट धारिणी, गुस्से वाला थप्पड़ खाकर भी शांत रस विचारिणी, एक निरीह अबला है। अजी ख़ूब सोची, हाड़ मांस की देह धारी दोनों बेटी-बहु में भेद कुछ ज़्यादा ही तगड़ा है। तो बस यही आपकी उल्टी गंगा वाली सोच आपको भुगतवाती है। स्त्री हो चली शिक्षित जान चुकी अपना स्तर आपको आप, ही की भाषा में, ब्याज सहित जब लौटती है, आपका कहा आपसे उगलवाती है बस तभी जी हाँ! बस त्यों ही, दूजे की संस्कारी निर्छल बेटी बुरी बहु कहलाती है। तो आपके करम स्वलिखित पंक्तियों में दोहराती हूँ। मन की उपज नहीं यह मेरी, पूँछा है? आपकी ही बहुयों से बस वो ही लिख जाती हूँ। चलो अब टूटने वाले उन घरों की जिसका एकमात्र कारण प्रचारित होती है बहु यथोचित कारण बतलाती हूँ।

छंद – दोहा
रस – करुण, शांत
अलंकार – श्लेष अलंकार

पर जाया के सामने, अकड़ रहे सबकोइ।
एहि विधि ससुरालिये, मेंटे मानापन खोइ।।

एक कहे सोफा नहीं, टेबल संग ना होइ।
फ़्रीज दियो ना बाप ने, कमतर सोना जोइ।।

एक कहे ना पाँव पखारे, एक कहे ना पाँव पखारे।
वस्त्र महंग ना होय, भोग-व्यवस्था भली ना करी, निजहीं प्रतिष्ठा धोय।।

एक कहे मोहे चैन ना दई, गिरमा ख़ातिर माई।
बड़ी दरिद्री तोरि बहुरिया, उहइ तोहे जो जाई।।
(दुस्साहस समझिये ससुरालियों का, जननी पर अपशब्द)

एक कहे देखब की कैसे? दूजी बिटिया ब्याहे।
धान पसेरी भर ना जिनके, कइसन दाल उगाहे।।

एक कहे यह कारी पीरी, ननद कहे। जा कारी पीरी, बिटवा चूना बोरी।
साँवर बहु गोर कै संगे, भइल बेइज्जती थोरी।।
(प्रचण्ड मूर्खतापूर्ण कार्य रंग तो प्रभु बनाते हैं इसपर आरोप राम!राम)

एक कहे, काहे ब्याह लिए हम? मिलत हुआँ से कार।
बकरी मोल बिकाबय बैला, जिवन भवा बेकार।।

अपनी भई तबई ससुराली, बहुतई मुँह बिचकाएँ।
दूसर के ना बे तो आपन, भविस खुदई तम धाएँ।।
(तम- घोर अंधकार)

दानव जब दहेज़ सर् चढ़कर, कलयुग अस बिचराये।
ऋषि कंठन मृत नाग वरावे, अस मानुष करजाय।।

श्राप पड़े; बिन सींग की बकरी, बहुरि अश्रु बहाय।
ओहि के अपमान करत हैं, लक्ष्मी कह जेहि लाय।।

लालच पर लालच हावी हो, अनुपम दर्शन जोय।
ज्ञानी कहगए कांटा बोकर, मीठ स्वाद ना होय।।

कमर झुके ज्यों सास-ससुर की, बहु के दिन जब आएं।
पानी-रोटी पड़त हैं लाले, करम गति अस पाएं।।

क्रूर भई तब जेल भिजा दे, भली तो सब सह जाए।
मगर भेद हिरदय महु राखे, प्रेम सास ना पाए।।

एहिबरे बस संतोष राखियो, दो जोड़े में आये।
सत भाँवर ले जोन पतोहू, स्नेहिल अपनाय।।
प्रेम सहित अपनाएँ तबहिं जीवन सुखमय हो।
चुलहा एक रखाय गृहस्थी, अवधमय हो।।

दोई दिबस की लालसा, जीवन भर रुलवाये।
अनुपम चूक ना कीजिये, तो सुख सदा समाये।।

किसी से गलत सहने की आशा से अच्छा है गलत कभी ना कहना। बूढ़े ७० के बाद होते हैं ५०-५५ साल के लोग ये पंक्तियाँ दोहराते देखे-सुने जाते हैं कि बुजुर्गों की चार बात सुननी चाहिए। सुननी तो चाहिए मगर बात ना कि दहेज़ वाली व्यंग्यात्मक बकवास। मैंने कारण बता दिया आपका परिदृश्य जोड़ो चाहे लालच आगे रखकर तोड़ो। कुछ निर्लज्ज तो शादी के बाद भी बहु के मायके से पाने ही पाने की आशा रखते हैं। इसलिए दहेज़ प्रथा की परिपाटी वाला प्रकरण भुगतते हैं। झूठे हर केस हैं ऐंसा नहीं है । बहुयों ने मनमानी बहुत सही है। दावे से कहती हूँ जिस दिन दहेज़ लोभी के वाज़िब केस न्यायालय की दहलीज़ पर लाये जाएंगे। बनवाने पड़ेंगें हजारों जेलखाने ये धूर्त संख्या में हैं इतने चंद तहख़ानों में नहीं समायेंगे।

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परिचय :- अर्चना पाण्डेय गौतम
साहित्यिक उपनाम – अर्चना अनुपम
जन्म – २१/१०/१९८७
मूल निवासी – जिला कटनी, मध्य प्रदेश
वर्तमान निवास – जबलपुर मध्यप्रदेश
पद – स.उ.नि.(अ),
पदस्थ – पुलिस महानिरीक्षक कार्यालय जबलपुर जोन जबलपुर, मध्य प्रदेश
शिक्षा – समाजशास्त्र विषय से स्नात्कोत्तर
सम्मान – जे.एम.डी. पब्लिकेशन द्वारा काव्य स्मृति सम्मान, विश्व हिन्दी लेखिका मंच द्वारा नारी चेतना की आवाज, श्रेष्ठ कवियित्री सम्मान, लक्ष्मी बाई मेमोरियल अवार्ड, एक्सीलेंट लेडी अवार्ड, विश्व हिन्दी रचनाकार मंच द्वारा – अटल काव्य स्मृति सम्मान, शहीद रत्न सम्मान, मोमसप्रेस्सो हिन्दी लेखक सम्मान २०१९..
विधा – गद्य पद्य दोनों..
भाषा – संस्कृत, हिन्दी भाषा की बुन्देली, बघेली, बृज, अवधि, भोजपुरी में समस्त रस-छंद अलंकार, नज़्म एवं ग़ज़ल हेतु उर्दू फ़ारसी भाषा के शब्द संयोजन
विशेष – स्वरचित रचना विचारों हेतु विभाग उत्तरदायी नहीँ है.. इनका संबंध स्वउपजित एवं व्यक्तिगत है


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