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अंधेरे में जो मुस्करा दे

शरद सिंह “शरद”
लखनऊ

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घनश्याम कहते हैं
अंधेरे में जो मुस्करा दे,
उसे दीप कहते हैं,
मोती है जिसके अंतर में,
उसे सीप कहते हैं,
दिल में उठी तरंग को,
उमंग कहते हैं,
करदे जो अपने जैसा,
उसे रंग कहते हैं,
चले जो निरंतर उसे,
अविराम कहते हैं,
बस जाये जो धड़कन में,
उसे घनश्याम कहते हैं।

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परिचय :- बरेली के साधारण परिवार मे जन्मी शरद सिंह के पिता पेशे से डाॅक्टर थे आपने व्यक्तिगत रूप से एम.ए.की डिग्री हासिल की आपकी बचपन से साहित्य मे रुचि रही व बाल्यावस्था में ही कलम चलने लगी थी। प्रतिष्ठा फिल्म्स एन्ड मीडिया ने “मेरी स्मृतियां” नामक आपकी एक पुस्तक प्रकाशित की है। आप वर्तमान में लखनऊ में निवास करती है।


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