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कब से मदन रहा है सींच

माधवी मिश्रा (वली)
लखनऊ (उत्तर प्रदेश)
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खिलते फूलों की खुशबू से
महक रहा था मेरा मन
चटक चाँदनी की किरणों से
रश्मित था घर का आँगन

जुही चमेली बेला गुढ़हल
ओढ़े फूलों की चादर
रात लजाती आई थी तू
जग मग था सब अगर डगर

चंदन की तब शोख महक ने
कानो मे कुछ बोल दिया
ज्यों भवरे की पंख ध्वनि ने
बंशी का रस घोल दिया।

कोमल कलियाँ फूल बन गयी
थिरक रहीं सूरज के संग
कमल कुमुदनी उठी उनींदी
भूल गयीं रातो का रंग

इंद्र धनुष की सतरंगी
डोरी से जैसे बँधे हुए
फूलो की अनगुथ वेड़ी ज्यों
हो केशो मे सजे हुए

आई थी मृदु विमल विभा सी
रज्जु रथी तुम बन करके
ज्यों हीरक तारावलियाँ
उतरें भू पर छन कर के।

सजा हुआ रति भवन सरीखा
मंडप नभ के बीचों बीच
फूलों सी नभ मन्जरियों को
कब से मदन रहा है सींच।

परिचय :- माधवी मिश्रा (वली)
जन्म : ०२ मार्च
पिता : चन्द्रशेखर मिश्रा
पति : संजीव वली
निवासी : लखनऊ (उत्तर प्रदेश)
शिक्षा : एम.ए, बीएड, एलएल बी, पीजी डी एलएल, पीजीडीएच आर, एमबीए,।
प्रकाशन : तीन पुस्तकें प्रकाशित अनेक साझा संकलन, काव्य, लेख, कहानी विधा पत्र पत्रिकाओं रेडियो दूरदर्शन पर-प्रकाशन, प्रसारण,अनेक सामाजिक संस्थाओं व संगठनो मे सह भागिता। समाज सेवा
सम्प्रति : वर्तमान मे अंग्रेजी माडल स्कूल की प्रधान शिक्षिका।
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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