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रेशम की डोर

ममता रथ
रायपुर

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रेशम की इक डोर ने मुझको
खींचा अपने बचपन में
कभी झगड़ते कभी मस्ती
और खेला करते थे संग संग में
दिन बीते , मौसम बदले
वक़्त की भी उम्र बढ़ी
सीखी हमने भी धीरे से
जीवन की बारहखड़ी ।
कितने रिश्ते-नाते हमने निभाए प्यार से
भाई-बहन सा नहीं है रिश्ता इस संसार में
इसलिए याद आती है बचपन की धमाचौकड़ी
काश हमने ना सीखी होती
जीवन की बारहखड़ी !

परिचय :-  ममता रथ
पिता : विद्या भूषण मिश्रा
पति : प्रकाश रथ
निवासी : रायपुर
जन्म तिथि : १२-०६-१९७५
शिक्षा : एम ए हिंदी साहित्य
सम्मान व पुरस्कार : लायंस क्लब बिलासपुर मे सम्मानित, श्री रामचन्द्र साहित्य समिति ककाली पारा रायपुर २००३ में सांत्वना पुरस्कार, लोक राग मे प्रकाशित, रचनाकार में प्रकाशित
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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