आशीष तिवारी “निर्मल”
रीवा मध्यप्रदेश
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यूँ तो शुकुलाईन अपने शहर की जानी पहचानी फेसबुक यूजर हैं, शुकुलाईन के शहर के बिगड़े नवाब, लफंगे लुच्चे, टुच्चे, पनवाड़ीे से लेकर धोबी तक सभी शुकुलाईन की फेसबुक मित्र सूची में हैं, शुकुलाईन की हर फेसबुक पोस्ट पर यह सभी लोग लव रियेक्ट कर खुद का जीवन सफल मानते हैं। वहीं शुकुलाईन भी इतनी संख्या में फेसबुक पोस्ट पर लव रिएक्ट पाकर खुद को गौरान्वित महसूस करती हैं, ना जाने कितने ही फेसबुक समूहों में अपनी द्विअर्थी संवाद से परिपूर्ण टिप्पणी एवं पोस्ट को लेकर निकम्मे, निठल्ले और “फुरसतिए टाइप” के लड़कों के मध्य शुकुलाईन कौतूहल का विषय बनी हुई हैं। फेसबुक का इतिहास इस बात की गवाही देने से साफ मुकर गया है कि आज दिनांक तक शुकुलाईन ने कोई तरीके की या यूँ कहें कि सार्थक (पढ़ने योग्य) एकाध पंक्ति भी फेसबुक पर लिखी हो!! बवाल और भसड़ मचाने वाली फेसबुक पोस्ट के चलते शुकुलाईन बहुत से ग्रुपों की एडमिन पैनल में अपनी पैठ बना ली हैं। फेसबुक समूहों से बाहर भी एक दुनिया है। यह बात साक्षात परमात्मा आकर शुकुलाईन से कहें तब भी शुकुलाईन मानने को तैयार नहीं हैं। एक समूह के एडमिन के अत्याधिक निकट होने के कारण शुकुलाईन शीघ्र ही एक साहित्यिक समूह में घुस आईं। समूह में घुसते ही शुकुलाईन का साहित्य प्रेम जागा और शुकुलाईन ने साहित्य सेवा का बीड़ा उतना ही उठाया जितनी उनकी उम्र और वजन का योग आता था ६६ किलो ग्राम। साहित्यिक समूह से जुड़ने के पश्चात समूह के सदस्यों को शुकुलाईन ने बताया कि वो बचपन से ही “साहित्यकारिन” बनना चाहती थीं। लेकिन “फेसबुक ग्रुप” और “क्लोज एडमिन” नही मिल पाने के कारण उनकी प्रतिभा दबी रह गई। चूंकि साहित्यिक समूह में शुकुलाईन नवागंतुक “साहित्यकारिन” थी इस लिए समूह में पूर्व से ही नाग की तरह कुंडली मारकर बैठे साहित्यकार शुकुलाईन की तरफ बड़ी आशा भरी निगाहों से देख रहे थे, देरी थी बस शुकुलाईन की तरफ से एक पोस्ट करने की। और साहित्य का वह काला दिवस भी आया जब शुकुलाईन गीत, ग़ज़ल, कविता, कहानी आदि साहित्यिक विधाओं का नियमित रूप से बारी- बारी वज्रपात करने लगीं। किसी भी साहित्यिक विधा से शुकुलाईन कोई भेदभाव नही बरततीं साहित्य में शुकुलाईन सबका साथ और सबका विनाश एक साथ कर रही थीं। साहित्यिक समूह में अपनी “छीछालेदर साहित्य” के चलते आज शुकुलाईन अलग मुकाम पर पहुँच चुकी हैं। साहित्य को लेकर शुकुलाईन इतनी हस्त सिद्ध हो चुकी हैं कि अब वो नवोदित रचनाकारों की रचनाओं को पढ़ कर नहीं अपितु सूंघकर ही रिजेक्ट कर देती हैं। नवोदित रचनाकारों से लेकर वरिष्ठ रचनाकार तक अब अपनी रचनाओं को शुकुलाईन से जंचवाने के लिए शुकुलाईन के फेसबुक इनबॉक्स एवं वाटस्प तक की कतार में लगे रहते हैं। शुकुलाईन सुबह आठ बजे से रात एक बजे तक साहित्यिक समस्याओं का आन लाईन समाधान करती हैं। साहित्य में उनके इस अभूतपूर्व योगदान के लिए शीघ्र ही उन्हें सरकार द्वारा सम्मानित किया जाए यही शुभकामना है।
लेखक परिचय :- कवि आशीष तिवारी निर्मल का जन्म मध्य प्रदेश के रीवा जिले के लालगांव कस्बे में सितंबर १९९० में हुआ। बचपन से ही ठहाके लगवा देने की सरल शैली व हिंदी और लोकभाषा बघेली पर लेखन करने की प्रबल इच्छाशक्ति ने आपको अल्प समय में ही कवि सम्मेलन मंच, आकाशवाणी, पत्र-पत्रिका व दूरदर्शन तक पहुँचा दीया। कई साहित्यिक संस्थाओं से सम्मानित युवा कवि आशीष तिवारी निर्मल वर्तमान समय में कवि सम्मेलन मंचों व लेखन में बेहद सक्रिय हैं, अपनी हास्य एवं व्यंग्य लेखन की वजह से लोकप्रिय हुए युवा कवि आशीष तिवारी निर्मल की रचनाओं में समाजिक विसंगतियों के साथ ही मानवीय संवेदनाओं से परिपूर्ण, भारतीय ग्राम्य जीवन की झलक भी स्पष्ट झलकती है, इनकी रचनाओं का प्रकाशन एवं प्रसारण विविध पत्र-पत्रिकाओं एवं दूरदर्शन- आकाशवाणी के विविध केंद्रों से निरंतर हो रहा है। वर्तमान समय पर हिंदी और बघेली के प्रचार-प्रसार में जुटे हुए हैं।
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