डाॅ. दशरथ मसानिया
आगर मालवा म.प्र.*******************
रघुकुल वंश शिरोमणी, मनुज राम अवतार।
मर्यादा पुरुषोत्तमा, कहत है कवि विचार।।जै जै जै प्रभु जय श्रीरामा।
हनुमत सेवक सीता वामा।।१लछमन भरत शत्रुघन भ्राता।
मां कौशल्या दशरथ ताता।२चैत शुक्ल नवमी सुखदाई।
दिवस मध्य जन्में रघुराई।।३नगर अवध में बजी बधाई।
नर नारी गावे हरषाई।।४दशरथ कौशल्या के प्राणा।
करुणा के निधि जनकल्याणा।।५श्याम शरीरा नयन विशाला।
कांधे धनुष गले में माला।।६काक भुसुंड दरश को आते।
शिव भी जिनकी महिमा गाते।।७विश्वामित्र से शिक्षा पाई।
गुरु वशिष्ठ पूजे रघुराई।।८बालपने में जग्य रखवाये।
ताड़क बाहू मार गिराये।।९गौतम नारी तुमने तारी।
चरण धूल की महिमा भारी।।१०मुनि के संग जनकपुर जाई।
शिव का धनुष भंग रघुराई।।११सीता के संग ब्याह रचाया।
जनक सुनेना के मन भाया।।१२मिथिला नगरी दरशन प्यारे।
नर नारी सब भये सुखारे।।१३मात पिता के वचन निभाये।
राज त्याग कर वन को धाये।।१४केवट गंगा पार कराये।
भक्तों का तुम मान बडाये।।१५पंचवटी में कुटी बनाई।
संगे सीता लक्ष्मण भाई।।१६अनुसुइया के चरण पखारे।
सीता सहित धरम विचारे।।१७मुनि सुतीक्ष्ण के दर्शन पाये।
कबंध आदि को मार गिराये।।१८सीता हरणा विपदा भारी।।
भगत जटायू को भी तारी।।१९मुनि मतंग की शिष्या प्यारी।
भोली शबरी भाव विचारी २०प्रेम भाव जूठे फल खाये।
भक्ती दीनी मान बढ़ाये।।२१ऊंच नीच का भेद मिटाया।
केवट भिलनी गले लगाया।।२२सेवक हनुमत जंगल पाये।
बांहें फैला गले लगाये।।२३किष्किंधा के राजा बाली।
व्यभिचारी बड़ बलधारी।२४राज तिलक सुग्रीव कराया।
सखा भाव का धर्म निभाया।।२५वानर भालू सेन बनाई।
फिर लंका पे करी चढ़ाई।।२६जब सागर ने मारग रोका ।
चाप चढ़ाई कीना कोपा।।२७सागर दौड़ा दौड़ा आया।
हीरा मोती भेंट चढ़ाया।।२८नल नीला को तुरत बुलाया।
सेतु बांध का भेद बताया।२९सीता खोजी लंका जाई।
सिंधु पार सेना पहुंचाई।।३०मेघनाथ का किया संहारा।
रावण कुंभकरण को मारा।।३२सोने की लंका ठुकराई ।
भक्त विभीषण राज दिलाया।।३३राक्षस मारे भक्तन तारे।
बरसे सुमना जय जयकारे।।३४चौदह वर्ष वनवास बिताये।
पुष्पक बैठ अवध को आये।।३५राज तिलक से जन हरषाये।
सुर नर मुनी आरती गाये।।३६एक राम तुलसी के प्यारे।
दूजा कबिरा ज्ञान उचारे।।३७सरगुण निरगुण एकहि मानो।
इनमें तनिक भेद नहि जानो।।३८पांच अगस्ता तिथि शुभ आई।
मंदिर भव्या नींव खुदाई।।३९जो नित उठ के राम उचारे।
यह चालीसा पार उतारे।। ४०यह चालीसा जो पढ़े, करे राम का ध्यान।
मर्यादित जीवन जिये, मिले सदा सम्मान।।
परिचय :- आगर मालवा के शासकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय आगर के व्याख्याता डॉ. दशरथ मसानिया साहित्य के क्षेत्र में अनेक उपलब्धियां दर्ज हैं। २० से अधिक पुस्तके, ५० से अधिक नवाचार है। इन्हीं उपलब्धियों के आधार पर उन्हें मध्यप्रदेश शासन तथा देश के कई राज्यों ने पुरस्कृत भी किया है। डॉं. मसानिया विगत १० वर्षों से हिंदी गायन की विशेष विधा जो दोहा चौपाई पर आधारित है, चालीसा लेखन में लगे हैं। इन चालिसाओं को अध्ययन की सुविधा के लिए शैक्षणिक, धार्मिक महापुरुष, महिला सशक्तिकरण आदि भागों में बांटा जा सकता है। उन्होंने अपने १० वर्ष की यात्रा में शानदार ५० से अधिक चालीसा लिखकर एक रिकॉर्ड बनाया है। इनका प्रथम अंग्रेजी चालीसा दीपावली के दिन सन २०१० में प्रकाशित हुआ तथा ५० वां चालीसा रक्षाबंधन के दिन ३ अगस्त २०२० को सूर्यकांत निराला चालीसा प्रकाशित हुआ।
रक्षाबंधन के मंगल पर्व पर डॉ दशरथ मसानिया के पूरे ५० चालीसा पूर्ण हो चुके हैं इन चालीसाओं का उद्देश्य धर्म, शिक्षा, नवाचार तथा समाज में लोकाचार को पैदा करना है आशा है आप सभी जन संचार के माध्यम से देश की नई पीढ़ी को दिशा प्रदान करेंगे।
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