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डाॅ. दशरथ मसानिया
आगर मालवा म.प्र.
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गोवर्धन गौआ चरण, घांस पात भंडार।
कणकण में राधारमण, कहे मसान विचार।।
जय जय गोवर्धन महराजा।
ग्वालबाल के तुम ही राजा।।१
छप्पन भोग तुम्हें लगाऊं।
नित उठ पूजा कर गुण गाऊं।।२
गौ माता के पालन हारा ।
घांस पात के तुम भंडारा।।३
पर्यावरण के हो तुम रूपा।
छाया फल दे संत स्वरूपा।।४
जीव जन्तु के तुम रखवारे।
पंछी करते कलरव सारे।।५
सात कोस की करे चलाई।
कोई चलते दंडवत जाई।।६
लाल लंगुरों की चपलाई।
फल फूलों को लेत छुडाई।।७
लाला ने जब तुम्हे उठाये।
तब से गिरधारी कहलाये।।८
जय गिरधर जय पर्वत राजा।
माथमुकुट भौ तिलक विराजा।।९
जतीपुरा अरु मानस गंगा।
दान घाटी से धरम प्रसंगा।।१०
नंगे पैर अरु हाथन माला।
मुख में नाम भजें गोपाला।।११
हर पाथर है सालग रामा।
तेरी रज मे बसती श्यामा।।१२
सात दिनों की बरसा भारी।
हा हा करते गोपी ग्वारी ।।१३
इन्दर का अभिमान गिराया।
उंगली पे जब तुम्हें उठाया।।१४
ग्वाल बाल ने पूजा कींही।
बाल मुकुन्द की भक्ति चींही ।।१५
हे गोवर्धन हे गिरधारी ।
तुमको भजती दुनिया सारी।।१६
पीपल तुलसी कदंब छैया।
जहां पे कृष्ण चराते गैया।।१७
ताडे दानव सुख के भरता।
दुख दारुण सभी के हरता।।१८
दूध दही का भोग तुम्हारा।।
खीर पुडी भी लागे प्यारा।।१९
जो तुम्हरी परिकम्मा करते।
सभी मनोरथ पूरे भरते ।।२०
सवैया रास खान रचाये।
सूरदास ने राग सुनाये।।२१
पुष्टीय निम्बक गोडी भाई।
सभी तुम्हारी करे बडाई।।२२
मुखारबिंद श्रीनाथ पधारे।।
वल्लभ प्रभु भक्तन रखवारे।।२३
अष्टछाप की महिमा भारी।
वल्लभ विट्ठल कही बिचारी।।२४
पाथर पूजे पाय मुरारी ।
ऐसी सच्ची भक्ति हमारी।।२५
शुक्ला एकादश से पूनम।
भंडारे चलते हैं हरदम।।२६
दूर-दूर से भक्त जो आते।
महिमा मारग कीरति गाते।।२७
वृन्दावन में बांक बिहारी ।
सुंदर मंदिर चार किवारी।।२८
दिवाली एकम द्वार सुहाते।
गोबर से गिरिराज बनाते।।२९
गांव गांव में हीडें गाते ।
गौमाता सिंगार सजाते।।३०
ब्रज मंडल में मथुरा नगरी।
कोस चौरासी जनता सगरी।।३१
यमुना जी का कीजे पाना।
पावन जल में कर अस्नाना।३२
धीस द्वारका दर्शन कीजे।
भोग आरती अचमन लीजे।।३३
मथुरा में जन्मे भगवाना।
गोकुल करते लीला नाना।।३४
वृंदावन में रास रचाई।
सखियन संग प्यारी आई।।३५
बरसाने में खेले होरी।
बृषभानु की राधा भोरी।।३६
नंद गाम की करुं बडाई।
जाकी महिमा वेदन गाई।।३७
दरश परश सिंगार सजावे।
हर महिना सत्संग करावे।।३८
नारद शारद तुमको गाते।
दास मसानी शीश झुकाते।।३९
गोवरधन चालीसा गावे।
नाशे रोग सुख संपति पावे।।४०
ब्रज मंडल की जातरा, जमनाजी का पान।
मन मोहन की बांसुरी, गोवर्धन का गान।।
परिचय :- आगर मालवा के शासकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय आगर के व्याख्याता डॉ. दशरथ मसानिया साहित्य के क्षेत्र में अनेक उपलब्धियां दर्ज हैं। २० से अधिक पुस्तके, ५० से अधिक नवाचार है। इन्हीं उपलब्धियों के आधार पर उन्हें मध्यप्रदेश शासन तथा देश के कई राज्यों ने पुरस्कृत भी किया है। डॉं. मसानिया विगत १० वर्षों से हिंदी गायन की विशेष विधा जो दोहा चौपाई पर आधारित है, चालीसा लेखन में लगे हैं। इन चालिसाओं को अध्ययन की सुविधा के लिए शैक्षणिक, धार्मिक महापुरुष, महिला सशक्तिकरण आदि भागों में बांटा जा सकता है। उन्होंने अपने १० वर्ष की यात्रा में शानदार ५० से अधिक चालीसा लिखकर एक रिकॉर्ड बनाया है। इनका प्रथम अंग्रेजी चालीसा दीपावली के दिन सन २०१० में प्रकाशित हुआ तथा ५० वां चालीसा रक्षाबंधन के दिन ३ अगस्त २०२० को सूर्यकांत निराला चालीसा प्रकाशित हुआ।
रक्षाबंधन के मंगल पर्व पर डॉ दशरथ मसानिया के पूरे ५० चालीसा पूर्ण हो चुके हैं इन चालीसाओं का उद्देश्य धर्म, शिक्षा, नवाचार तथा समाज में लोकाचार को पैदा करना है आशा है आप सभी जन संचार के माध्यम से देश की नई पीढ़ी को दिशा प्रदान करेंगे।
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