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रखना चाहिए जीव दया

प्रतिभा दुबे
ग्वालियर (मध्य प्रदेश)

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बेजुबां है ये पशु पक्षी सभी विचारे
बस प्रेम ही आपसे चाहते है सभी,
जो कह नही सकते है दुख अपना!
उनपर सदा रखनी चाहिए जीव दया।।

एक भाग अन्न का इनके लिए भी रख दो
बेजुबान है इन्हें भी कभी भोजन करा दो
आ जाए द्वार पे तुम्हारे प्रेम से यदि पशु,
कभी इनको भी तुम पानी पिला दो।।

क्यों मारो पीटो इनको बेकार,
करते सभी से पशु प्रेम प्यार ये,
इनकी भी है एक प्रेम की भाषा!
पहचानो तुम करके इनपर जीव दया।।

आबादी बढ़ रही हमारी है जब से
छीन लिया है हमने इनका जंगल,
सही मायने में वही था घर इनका,
प्रकृति मां भरती थी भोजन से पेट इनका।।

आज घर घर आते है आस यही लेकर
कोई तो होगा भोजन देने वाला इनको!
आज कचरा खाने पर विवश हुए पशु,
भोजन देकर कोई तो रखेगा जीव दया।।

हमें समझना होगा अब इनको
क्यों व्याकुल है हर पशु इतना!
ना भोजन न घर है कोई इनका
हम सबको रखनी चाहिए जीव दया।।

परिचय :-  श्रीमती प्रतिभा दुबे (स्वतंत्र लेखिका)
निवासी : ग्वालियर (मध्य प्रदेश)
उद्घोषणा : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।

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