Thursday, November 7राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर आपका स्वागत है... अभी सम्पर्क करें ९८२७३६०३६०

वो….. नाचती थी

प्रीति शर्मा “असीम”
सोलन हिमाचल प्रदेश

********************

वो….. नाचती थी ?

जीवन की,
हकीकत से,
अनजान।
अपनी लय में,
अपनी ताल में,
हर बात से अनजान।

वो…… नाचती थी?
सोचती………. थी?

नाचना ही….. जिंदगी है।
गीत-लय-ताल ही बंदगी है।

नाचना…….. ही जिंदगी है।
नहीं …….. शायद
नाचना ही…. जिंदगी नहीं है।

इंसान हालात से नाच सकता है।
मजबूरियों की,
लंबी कतार पे नाच सकता है।

लेकिन ………..
अपने लिए,
अपनी खुशी से नाचना।
जिंदगी में यहीं,
संभव -सा नहीं।

हकीकतें दिखी……
पाव थम गए।

फिर कभी सबकी आंखों से,
ओझल हो ……!!!
नाचती …..अपने लिए।

लेकिन जिम्मेदारियों से,
वह भी बंध गए।

फिर गीत-लय-ताल,
न जाने कहां थम गए।

पांव रुके,
और हाथ चल दिए।
शब्द नाचने लगे।
जीवन की,
हकीक़तों को मापने लगे।

उन रुके पांवों को,
आज भी बुलाते हैं।
तुम थमें हो,
नाचना भूले तो नहीं।

वो…..नाचती थी।
कभी हकीकतों से परे,
आज ……भी नाचती है।
हकीकतों के तले।।

.

परिचय :- प्रीति शर्मा “असीम”
निवासी – सोलन हिमाचल प्रदेश


आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.com पर अणु डाक (मेल) कीजिये, अणु डाक करने के बाद हमे हमारे नंबर ९८२७३ ६०३६० पर सूचित अवश्य करें … और अपनी कविताएं, लेख पढ़ें अपने चलभाष पर या गूगल पर www.hindirakshak.com खोजें…🙏🏻

आपको यह रचना अच्छी लगे तो साझा जरुर कीजिये और पढते रहे hindirakshak.com हिंदी रक्षक मंच से जुड़ने व कविताएं, कहानियां, लेख, आदि अपने चलभाष पर प्राप्त करने हेतु हिंदी रक्षक मंच की इस लिंक को खोलें और लाइक करें 👉🏻 hindi rakshak manch 👈🏻 … हिंदी रक्षक मंच का सदस्य बनने हेतु अपने चलभाष पर पहले हमारा चलभाष क्रमांक ९८२७३ ६०३६० सुरक्षित कर लें फिर उस पर अपना नाम और कृपया मुझे जोड़ें लिखकर हमें भेजें…

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *