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आग लगादो इस जहां को

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दामोदर विरमाल
पचोर जिला राजगढ़

आग लगादो इस जहां को जिसने यह गम दिया,
देकर सभी को ज्यादा मुझको ही कम दिया !

जो करता हे ईमानदारी
उसे बेईमानी खा जाती है !
कलयुग की शर्मशार हरकतों को
देख हमे शर्म आ जाती है !!
वो तारीफ़-ए-काबिल होगा
जिसने यह किस्सा ख़तम किया-
आग लगादो इस जहाँ को जिसने यह गम दिया……..!

जो प्यार देता सभी को उसे
खुद प्यार नहीं मिलता!
जो हंसाता रहे सभी को उसे
हंसने का अधिकार नहीं मिलता !!
खुश रहता हे वही जिसने यह सब हजम किया-
आग लगादो इस जहाँ को जिसने यह गम दिया……..!!

हमारे देश के नागरिको का
हम एक ऐसा उदहारण बताएँगे!
जो टी.वी. के रिमोट को
जोर से दबाएँगे,ठोकेंगे,
पर उसमे नए सेल नहीं डलवाएंगे !!
मेरा नमन हे उन माताओं को
जिन्होंने ने ऐसों को जनम दिया-
आग लगादो इस जहाँ को जिसने यह गम दिया……..!!!

अनुभव वो कंघी है जो ज़िन्दगी
आपको तब देती है जब आप गंजे हो जाते है?
पर अनुभव का कोई उपयोग नहीं करता,
दुनिया की चमक में सब अंधे हो जाते है !!
अब ऊपर वाले को भी क्या कहें जिसने यह सितम किया-
आग लगादो इस जहाँ को जिसने यह गम दिया……..!!!!

मिलके बिछड़ना दस्तूर हे ज़िन्दगी का!
एक यही किस्सा मशहूर हे ज़िन्दगी का !!
बीते हुए पल लौट के नहीं आते!
यही सबसे बड़ा कसूर हे ज़िन्दगी का !!
“राज” ने तो दुनिया को परखना
वही से सीखा जहाँ उसने जनम लिया-
आग लगादो इस जहाँ को जिसने यह गम दिया……..!!!!

लेखीका परिचय :- ३१ वर्षीय दामोदर विरमाल पचोर जिला राजगढ़ के निवासी होकर इंदौर में निवास करते है। मध्यप्रदेश में ख्याति प्राप्त हिंदी साहित्य के कवि स्वर्गीय डॉ. श्री बद्रीप्रसाद जी विरमाल इनके नानाजी थे। आपके द्वारा अभी तक कई कविताये, मुक्तक, एवं ग़ज़ल व गीत लिखे गए है, जो आये दिन अखबारों में प्रकाशित होते रहते है। गायन के क्षेत्र कराओके गीत गाने में आप खासी रुचि रखते है।


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