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भावों का रसमयी प्रदर्शन

अख्तर अली शाह “अनन्त”
नीमच

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भावों का रसमयी प्रदर्शन,
करना है तो नाचें गाएं।
रीति यही सदियों से कायम,
है आओ इसको अपनाएं।।

मोम बनाता है पत्थर को,
नृत्य बड़ा जादूगर भाई।
तन भी होता निरोग इससे,
सभी जानते ये सच्चाई।।

परमानंद नृत्य से मिलता,
लोगों आओ नाचें गाएं ।
रीति यही सदियों से कायम,
है आओ इसको अपनाएं।।

जब बच्चों को भूख लगे तो,
पैर पटकता देखा बचपन।
तृप्त हुए जब खा पी करके,
खुश होने का किया प्रदर्शन।।

नृत्य कला है अभिव्यक्ति की,
कैसे इसको कभी भुलाएं।
रीति यही सदियों से कायम,
है आओ इसको अपनाएं।।

दुष्टों का कर दमन सर्वदा,
नृत्य रहा पथ प्रभु पाने का।
आराधन का साधन भी ये,
नहीं तथ्य यह बहलाने का।।

नृतक बनाएं खुद अपने को,
भव सागर से पार लगाएं।
रीति यही सदियों से कायम,
है आओ इसको अपनाएं।।

नटवर नागर कृष्ण कन्हैया,
हैं “अनन्त” जो नश्वर लोगों।
धर्म और संस्कृति से जुड़कर,
नृत्य बसा यूँ घर घर लोगों।।

भोले शंकर भी नटराजा,
हैं चरणों में शीश झुकाएं।
रीति यही सदियों से कायम,
है आओ इसको अपनाएं।।

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परिचय :- अख्तर अली शाह “अनन्त”
निवासी : नीमच


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