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स्वयं की खोज

अनुराधा बक्शी “अनु”
दुर्ग, (छत्तीसगढ़)
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महिलाएं कभी अपने आप को अबला और कमजोर ना समझे। उनमें हर प्रकार की क्षमता और ताकत निहित है जिसे उन्हें पहचानना है और विकसित करना है और इस राह में निर्णय लेकर मेहनत की राह पर अकेले चलने से कभी डरना नहीं है। सचमुच “डर के आगे जीत है” इस अनुभव से स्वयं को रूबरू कराना है। वो सृजनकर्ता हैं। ये गुण हर स्त्री के अंदर है। सबसे पहले तो महिलाएं सहारा लेना छोड़ दे, क्योंकि वह प्रकृति की सर्वोत्तम रचना है। उनके अंदर अनगिनत रंग भरे हुए हैं जिन्हें उनको समझ कर उन्हे निखारना होगा। शील की तरह स्त्री में भी निर्माण और विनाश की दोनों का गुण है। वो सृष्टिकर्ता है, सृजनकर्ता हैं। अपनी अहमियत समझ उनको अपनी इन गुणों को विकसित कर परिवार और समाज और राष्ट्र के निर्माण में अपनी मजबूत भूमिका निभाना है। स्त्री अपने इन गुणों में तभी निखार ला सकती है जब वह हर परिस्थिति को बखूबी समझ सके। इसके लिए उसे साक्षर होकर आत्मज्ञानी बनना होगा। सय्यमी बनना होगा। क्योंकि वह इस प्रथम गुरु होती है जो एक पुंज को इस संसार से मिलती है। अतः सर्वप्रथम तो स्त्री को स्वयं का सम्मान करना होगा। अपनी अहमियत समझनी होगी।

तू ख्वाब आसमान का।
उड़ान है जहान का।
परमात्मा का अक्स तू।
सोच है विधान का।

तू खुद की खोज में निकल।
बने समाज राष्ट्रकुल।
समझ अपनी अहमियत।
उठ चल थोड़ा मचल।

आगाज है तू अंत नहीं।
परवाज है तू पंख नहीं।
शक्तिपुंज सूत्रधार।
ऋचाएं वेद की तू ही।

कुदरत का साज तू।
स्वयं की आवाज तू।
तू बिंब है जहान का।
जड़ नहीं परवाज तू।

परिचय :- अनुराधा बक्शी “अनु”
निवासी : दुर्ग, छत्तीसगढ़
सम्प्रति : अभिभाषक
घोषणा पत्र : मैं यह शपथ लेकर कहती हूं कि उपरोक्त रचना पूर्णतः मौलिक है।


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