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आत्मविश्वास

मंजिरी पुणताम्बेकर
बडौदा (गुजरात)

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  तीस साल का अशोक एक सीनियर प्रबंधक, बहुराष्ट्रीय कम्पनी के स्वागत कक्ष में बैठा था।अशोक थोड़ा आतुर था, थोड़ा घबराया हुआ क्यूंकि आज उसके जीवनकाल और उसके कम्पनी की सबसे बड़ा समझौते पर हस्ताक्षर होने जा रहे थे। तभी रिसेप्शनिस्ट ने आकर उसे बताया कि सर बुला रहे हैं और आपको प्रेज़ेंटेशन के लिये सिर्फ बीस मिनट का समय है।
अंदर जाकर जैसे ही अशोक ने प्रेजेंटेशन देना शुरू किया वो बीस मिनट कब जाकर चार घंटे हो गये पता ही नहीं लगा। उसके प्रेजेंटेशन से कम्पनी का मालिक बहोत खुश हुआ और डील साइन हुई। साइन करते-करते मालिक ने कहा- यंग मेन मैं तुमसे बहोत इम्प्रेस हुआ हूँ।
जब से अशोक आया तब से उसकी नजर वहाँ रखी लूज तम्बाकू और लूज कागज से जो हेंडरोल सिगरेट बनाते हैं वो उनकी मेज पर रखी थी। तभी मालिक ने अशोक से पूछा कि क्या तुम इसे लोगे? अशोक ने हामी भरते हुए एक ले ली। अशोक पेपर में तम्बाकू रखकर रोल करते-करते विचारों में खो गया। उसकी निद्रा तब टूटी जब कम्पनी के मालिक ने उसको कहा कि लगता है तुम्हारा इस सिगरेट से बहुत पुराना रिश्ता है। अशोक ने हामी भरी और बोला कि सर बहोत लम्बी कहानी है फिर कभी सुनाऊंगा। पर कम्पनी के मालिक ने कहा कि आज ही सुनेंगे। आज काम भी पूरा हो गया है और मैं अब फ्री हूँ।
अशोक ने बोलना शुरू किया। ये बात है जब मैं कक्षा चौथी में पढ़ता था। हमारी सोसायटी में मेरे पड़ोसी हमारे महाराजा साहब के रिश्तेदार थे। उनका बेटा मेरे साथ पढ़ता था। हम बहोत शरारती थे। इसीलिए हमारे घरवालों ने हमें एक रेप्युटेड स्कूल जहाँ होस्टल भी था वहाँ भेज दिया। वहाँ मैंने घुड़सवारी सीखी। घर के सारे लोग नाराज थे कि ब्राम्हण का बेटा घुड़सवारी करके क्या करेगा?
एक दिन स्कूल से हमें राजस्थान के टूर पर ले जाया गया। वहाँ हमारा एक डिनर का प्रोग्राम वहाँ के राजघराने के साथ था। वहाँ के महाराजा साहब ने हम सभी से हमारे भविष्य के बारे में पूछा। उन्होंने कहा कि उनकी हॉर्स पोलो की टीम है। क्या आपमें से कोई इस खेल को खेलने में रूचि रखता है? मैंने कहा हा महाराजा सा मैं पोलो चैम्पियन बनना चाहता हूँ।
मेरे बोलते ही वहाँ बैठे अंतर्राष्ट्रीय पोलो खिलाडी, वहाँ के दूसरे भी खिलाडी मेरा मजाक उडने लगे। बोले ब्राह्मण और घुड़सवारी? महाराजा साहब ने मुझे कल आने को कहा।
अगले दिन वो आलिशान घुड़मैदान देखकर मेरे तो हाथ पैर फूल गये। सारे खिलाड़ियों की उपहास भरी नजरें देखकर मैंने मन ही मन दृढ निश्चय किया कि अब मैं कर के ही दिखाऊंगा।
तभी महाराजा साहब ने कुछ घोड़े मंगवाए। उनमे से मुझे अपनी पसंद का घोड़ा चुनने को कहा। मुझे अब उस घोड़े पर बैठने का आदेश दिया। मैं छलांग लगाकर उसपर बैठा और घोड़े को पूरे मैदान में दौड़ाया। जब वापस आया तो महाराजा साहब ने सारे दर्शकों के सामने कहा कि तुम मानो या ना मानो ये लड़का नंबर तीन पर ही खेलेगा और तुम सबसे अच्छा खेलेगा।
घोड़े से उतरकर वापस आया तो वो उपहास भरीं नजरें सम्मान देनेवाली हो गईं थीं। पंद्रह दिन बाद मुझे ट्रेनिंग दी गई। सबके आशीर्वाद से मैं सात साल साथ नंबर तीन पर ही खेला। जब हम दुबई अंतर्राष्ट्रीय मैच जीते तब मैच जीतने पर महाराजा साहब ने मुझे कैप्सटन वाली सिगरेट पेशकश की क्यूंकि वो भी यही सिगरेट पीते थे। वही सिगरेट आज आपने मुझे पेशकश की तो इतने साल पुरानी यादें ताजा हो गईं। वो मेरे घोड़े, वो मेरे साईस, वो मेरा सेडल, वो मेऱा पोलो मैदान और सारी उपलब्धियां, कभी हार भी खाई। सारा मेरी आँखों के सामने से एक चलचित्र के माफिक घूम गया।
कम्पनी के मालिक मंत्रमुग्ध होकर सुनते रहे और बोले इट्स डिनर टाइम। चलो ताज़ चलते है वहीं करेंगे हम आज का डिनर। वो दोनों मर्सिडीज में बैठे।

परिचय :- मंजिरी पुणताम्बेकर
निवासी : बडौदा (गुजरात)
घोषणा पत्र : मेरे द्वारा यह प्रमाणित किया जाता है कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।


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