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तुम फिर एक दिन मिलने आना

मुकेश सिंह
राँची (झारखंड)

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चाँद का चमकीला उजास,
जगा रहा इस दिल की प्यास,
फैला है ऐसा प्रकाश,
जैसे मोती जड़े हों
टिमटिमाते तारों पर,
मन आज फिर खड़ा है़
यादों के चौराहे पर।
मुझे न ये चाँद चाहिए
न ये फलक चाहिए,
मुझे तो बस तेरी
एक झलक चाहिए,
आज भींगी है पलकें
फिर तुम्हारी याद में,
काश! कुछ ऐसा होता
की हम तुम होते साथ में।
याद है जब आँखों में सजा के
सपने, हम तुमसे मिलने आए थे,
याद है क्या वो पल
जब देख तुम्हें मुस्कुराए थे,
वो पहली बार छुअन से
मेरी तुम छुईमुई से शरमाए थे,
धड़कनों में तुम्हारी बस
हम ही हम समाए थे ।
याद है़ वो हाथों में हाथ लेकर,
हम साथ-साथ थे टहले,
पर अब तो ये कमबख्त
दिल ए बहलाने से न बहले,
तेरी लहराती जुल्फों ने
मेरे मन को भरमाया था,
पाया था सर्वस्व प्रेम का
जब तुमने गले लगाया था।
तुम्हारे बदन की खुशबू
मेरी सांसों मैं समाई है,
सपनों में तो जाने कितनी
बार तू मिलने आई है,
मजबूरी है, ये दूरी है
पर तुम भूल ना जाना,
तेरा रास्ता देखे आँखें,
तुम फिर एक दिन मिलने आना।

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परिचय :- मुकेश सिंह
निवासी : राँची (झारखंड)


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