वीणा वैष्णव
कांकरोली
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जिंदगी हकीकत, आज रूबरू करा रहे हैं।
आँखों के अंधों को, आईना दिखा रहे हैं ।।
हकीकत को बिसरा, अनजान बन रहे हैं।
अतीत गलती दोहरा, भविष्य बिगाड़ रहे हैं।।
अनीति से पैसा, रात दिन वो कमा रहे हैं।
कोई नहीं देख रहा, गलत कार्य कर रहे हैं।।
माँ-बाप के पूछने पर, पागल बना रहे हैं।
झूठी शानो शौकत, बच्चों संग डूब रहे हैं।।
करनी देख, प्रभु मन ही मन मुस्कुरा रहे हैं।
तेरे कर्मों की सजा, इसी जन्म में दे रहे हैं।।
लग रही पग पग ठोकर, संभल नहीं रहे हैं।
बच्चों की गलती पर, झूठ पर्दा डाल रहे हैं।।
उनके हर गुनाह पर, सिफारिश लगवा रहे हैं ।
आज का प्यार, कल मौत राह लेजा रहे हैं।।
वक्त रहते नहीं संभले, फिर पछता रहे हैं।
आई जब विपदा, अपने कर्मों पर रो रहे हैं।
जन्नत थी जिंदगी सबकी, जहन्नुम बना रहे हैं।
थोड़ा सुकून, बुजुर्ग आशीष से पा रहे हैं।।
बुजुर्ग स्नेहाशीष को, अब समझ वो रहे हैं।
उनकी छत्रछाया में, अब जिंदगी जी रहे हैं ।।
मात पिता प्रभु समझ, घर मंदिर बना रहे हैं।
सुबह भूले शाम, ऐसे लौट कर आ रहे हैं।।
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परिचय : कांकरोली निवासी वीणा वैष्णव वर्तमान में राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय फरारा में अध्यापिका के पद पर कार्यरत हैं। कवितायें लिखने में आपकी गहन रूचि है।
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