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एक चेहरा दिखता है

संजय जैन
मुंबई

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जहाँ पर हम होते है,
वहां पर तुम नहीं होते।
जहाँ पर तुम होते हो,
वहां पर हम नहीं होते।
फिर क्यों हर रोज सपने में,
तुम मुझको दिखते हो।
न हम तुमको जानते है,
और न ही तुम मुझको।।

ख़्वाबों का ये सिलसिला,
निरंतर चलता जा रहा।
हकीकत क्या है इसका,
नहीं हमको है अंदाजा।
किसी से जिक्र इसका,
नहीं कर सकता हूँ मै।
कही ज़माने के लोग,
हमें पागल न समझ ले।।

की रब से मै करता हूँ,
सदा ही ये प्रार्थना।
सदा ही खुश रहना तुम,
दुआ करता संजय ये।
की तुम जो भी हो,
और जहाँ पर भी हो तुम।
सदा ही सुखी शांति से,
रहना वहां पर तुम।।

अनजाने में कभी जो,
मिल गए अगर तुमको।
तो नज़ारे फेर मत लेना,
हमें अनजान समझकर।
कही रब को भी हो मंजूर,
हम दोनों का ये मिलाना।
की तुम दोनों बने हो बस,
सदा ही साथ रहने को।।

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परिचय :- बीना (मध्यप्रदेश) के निवासी संजय जैन वर्तमान में मुम्बई में कार्यरत हैं। करीब २५ वर्ष से बम्बई में पब्लिक लिमिटेड कंपनी में मैनेजर के पद पर कार्यरत श्री जैन शौक से लेखन में सक्रिय हैं और इनकी रचनाएं हिंदी रक्षक मंच (hindirakshak.com) सहित बहुत सारे अखबारों-पत्रिकाओं में प्रकाशित होते रहती हैं। ये अपनी लेखनी का जौहर कई मंचों पर भी दिखा चुके हैं। इसी के चलते कई सामाजिक संस्थाओं द्वारा इन्हें सम्मानित किया जा चुका है। आप मुम्बई के नवभारत टाईम्स में ब्लॉग भी लिखने के साथ – साथ मास्टर ऑफ़ कॉमर्स की शैक्षणिक योग्यता रखने वाले संजय जैन कॊ लेख,कविताएं और गीत आदि लिखने का बहुत शौक है, आप लिखने-पढ़ने के ज़रिए सामाजिक गतिविधियों में भी हमेशा सक्रिय रहते हैं।


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