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रचयिता : आशीष तिवारी “निर्मल“
कश्मीरी वादी को नही किसी की बुरी नजर लगेगी
ना ही अब खून से लथपथ वर्दी कोई सनी मिलेगी।
किताब ही होगी हाथों पर अब ना कोई पत्थर होगा,
केसर वाली क्यारी में अब ना कोई नस्तर होगा।
अजानों संग भजनों की अब सुखद आशनाई होगी
कौमी एकता की बजती सुरीली शहनाई होगी।
हिन्दू मुस्लिम में अब ना कोई नफरत का मंजर होगा
फूल ही बरसेंगे वादी से ना किसी हाथ में खंजर होगा।
आतंकी मंसूबे, देश विरोधी नारे अब नहीं सुनाई देंगे
कश्मीरी पंडित बेचारे ना अब लाचार दिखाई देंगे।
हट गई धारा तीन सौ सत्तर सिंहों ने ताकत दिखलाई है
कश्मीर हमारा था, है, और रहेगा भी गाथा दोहराई है।
लेखक परिचय :- नाम :- आशीष तिवारी निर्मल रीवा (मध्यप्रदेश)
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