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कबाड़ी किंग

रमेशचंद्र शर्मा
इंदौर (मध्य प्रदेश)
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कबाड़ी वाला और व्यंग। सुनने में बड़ा अटपटा लगता है। कबाड़ में तो कचरे की भरमार रहती है। कचरे से व्यंग का उत्पादन सचमुच बड़ा ही विस्मयकारी है। इधर कबाड़ी वालों की देश में भरमार है। सोचता हूं यदि हिंदुस्तान में कबाड़ वाले नहीं होते तो अटालों का क्या होता है? पूरे देश का अटाला सड़कों पर जमा हो जाता। कुछ लोग जो अटाले को घरों में बड़े करीने से सजाकर रखते हैं। कबाड़ हमेशा कबाड़ नहीं रहता। यदि किस्मत बल्लियों मचले तो कबाड़ भी एंटीक की कैटेगरी में आ जाता है। कबाड़ने कितने ही कावड़ियों की लाइफ बना दी। मतलब जो सड़क छाप थे आज राजमार्ग पर फराटे दार अंग्रेजी में बतिया रहे हैं।
हमारे शहर का एक कबाड़ी तो रातों रात लखपति की श्रेणी में आ गये। कावड़ची चाची बेगम के दिन इतनी जल्दी बदल गए। पूरे शहर के कबाड़ी उससे जलने लगे। शायद घूड़े के दिन भी इतनी जल्दी नहीं बदलते जितनी तेजी से मोहतरमा की शान शौकत बदल गई । उसके ठाट बाट रेजिया सुल्तान से बढ़कर हो गए । आजकल चोपहिया वाहन से नीचे कदम नहीं रखती। अंधों में कानी रानी सा रुतबा है उसका समाज में । कल तक जो कबाड़ में से लोहा, प्लास्टिक चुनती थी । आज खैरात की अलमदार बन चुकी है । वह अपने लोगों को हिकारत की नजर से भी देखने लगी ।
बात खेत की चल रही थी मेरी कलम खलियान में जाकर थ्रेसर में डंठल ठुंसने लगी। एक दिन अचानक कबाड़ी वाले भाई जान एक जलसे में मिल गए। उनकी सूरत और सीरत दोनों बदल चुकी थी। हमने कहा “अमां मियां, कौन सा अलाउद्दीन का चिराग हाथ लग गया । रातों-रात फर्श से अर्श पर पहुंच गए। हमको भी कोई जुगाड़ बताओ”? मेरी बात सुनकर कबाड़ी वाले का सीना गर्व से फूल गया। उसे लगा मेरे रुतबे को कोई तो रिकॉग्नाइज कर रहा है। भूतपूर्व कबाड़ी ने पान का बीड़ा मुंह में फंसाते हुए कहा “अरे पूछो मत साहब, बहुत लंबा सफर है। ऊपर वालों की मेहर के बिना यहां तक नहीं पहुंच सकते। दो अम्मिंया और १२ भाई बहन थे । अब्बू पंचर पकाते थे। हमने भी पूरी जवानी पंचर पकाकर बर्बाद कर दी। भला हो हमारी तीसरी बेगम का ।धंधा बदलने की सलाह दी। पूंजी तो हुई थी नहीं । बीपीएल कार्ड पर गुजारा हो रहा था ।फिर हमने कबाड़ी का धंधा पकड़ लिया । अब पूरा शहर हमें कबाड़ा किंग के नाम से जानता है ।बाकी सब कुछ आपके सामने है”।
मैंने अपने पांचों उंगलियां दातों में दबाकर जोर से काट ली। उन्नति के नए आयाम, नई कहानी सुनने को मिली, हम तो भूतपूर्व कबाड़ी की शान शौकत देखकर अचंभित थे । हमें कबाड़ में अपना फिर से दिखाई देने लगा ।ऊपर वाले से कबाड़ी जैसी किस्मत मांगने लगे । पान की पिचकारी सड़क पर लगे साइन बोर्ड पर फेंकते हुए कबाड़ी किंग बोले “कबाड़ी के धंधे में भी बड़े पापड़ बेलने पड़ते हैं साहब। इस बाजार में भी अमीरों ने कब्जा कर लिया है । शुरुआत गलियों पर ठेला गाड़ी घुमा कर कबाड़ा खरीदने से की है। खानदानी कबाड़ियों के शागिर्द बने। उन्हें उस्ताद बनाया। उनसे कबाड़ी भाषा सीखी वह तो अच्छा हुआ हमारा बैकग्राउंड पंचर पकाने वाला था । इस कारण ज्यादा मुश्किल नहीं पेश आई। बेगम साहिबा घर पर कबाड़ संभालती, तो हम मार्केट का पूरा कबाड़ घर पर ले आते ”
तभी वहां पुलिस वैन आ धमकती है। पुलिस वैन का सायरन सुनकर कबाड़ा किंग दाएं बाएं होने लगे। तभी एक पुलिसकर्मी ने लपक कर कबाड़ी किंग का गिरेबान पकड़ लिया । पुलिस इंस्पेक्टर बोला “बड़े कबाड़ी किंग बने फिरते हो ।कबाड़ की आड़ में तुमने दो नंबर के काम किए हैं।। उसका सारा भांडा फूट चुका है । तुमने नंबर दो का माल खरीद कर बहुत माल बना लिया है । हमारे पास सारे गवाह और सबूत हैं । तुम्हारे घर का सर्च वारंट हमारे पास है ।शराफत से घर चले चलो”।
कबाड़ी किंग घबरा गया । अपने कीमती मोबाइल से किसी मंत्री को फोन लगाने लगा। पुलिस इंस्पेक्टर ने मोबाइल छीनकर दो थप्पड़ रसीद कर दिए । उसे जीप में बैठाकर थाने ले गए। इधर बेगम साहिबा कुछ हिमायतियों को लेकर थाने का घेराव करने पहुंच गई।

परिचय : रमेशचंद्र शर्मा
निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।


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