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शब्दों के पैमाने

श्रीमती विभा पांडेय
पुणे, (महाराष्ट्र)

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यदि कुछ बनने को कहूं तो सागर बन सकते हो क्या?
जैसे वह अमृत हो या गरल, खुद में पचाकर शांत रहता है।

वैसा धीरज तुम भी दिखा सकते हो क्या?
अगर नहीं, अगर नहीं तो बोलो मत, चुप बैठो।

संविधान ने स्वतंत्रता अभिव्यक्ति की दी है,
शब्दों से घाव करने की नहीं।

भाषा के गलत प्रयोग से तुम जो इतना ज़हर फैला रहे हो
मानवता को जला रहे हो।

जो संबंध ही नहीं बचे तो अकेले रह सकोगे क्या?
अकेलेपन की व्यथा सह सकोगे क्या?

ये भारत देश है जहाँ हर तरह के फूल खिलते,
हर विचार के लोग मिलते।

अपनी घृणा को त्याग, इस पावन मही पर
स्नेहिल भाषा की गंगा फिर बहा सकते हो क्या?

हिंन्दी जो देश की आन,बान शान है,
हिन्दी प्रेमियों के गर्व की पहचान है।

हिन्दी तो हिंद के जन जन की जान है,
इसे बोलने में लेकिन कभी गलत संधान न हो।

हिन्दी है प्यार, स्नेह की भाषा,
इससे किसी का भूल से भी किसी विधि अपमान न हो।

परिचय :- श्रीमती विभा पांडेय
शिक्षा : एम.ए. (हिन्दी एवं अंग्रेजी), एम.एड.
जन्म : २३ सितम्बर १९६८, वाराणसी
निवासी : पुणे, (महाराष्ट्र)
विशेष : डी.ए.वी. में अध्यापन के साथ साथ साहित्यिक रचनाधर्मिता में संलग्न हैं ।
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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