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कहो पर सुनो मत

संजय जैन
मुंबई

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लिखे वो लेखक
पढ़े वो पाठक।
जो पढ़े मंच से
वो होता है कवि।
जो सुनता वो
श्रोता होता है।
यही व्यवस्था है
हमारे भारत की।
लिखने वाला कुछ भी
लिख देता है।
पढ़ने वाला कुछ भी
पढ़ लेता है।
और कुछ का कुछ
अर्थ लगा लेता है।
पर सवाल जवाब का
मौका किसे मिलता है?
यही हालात आजकल
हमारे महान देश का है।
न कोई सुनता है
न कोई कुछ कहता है।
अपनी अपनी ढपली
हर कोई बजता रहता है।
और अपनी धुन में
वो मस्त रहता है।
इसलिए अब हिंदुस्तान में
संवाद खत्म हो गया है।
और भारत को विश्वस्तर पर
पीछे कर दिया है।
जिसका सबसे ज्यादा असर,
हिंदी साहित्य पर पड़ा है।
और भारत की संस्कृति
व इतिहास लुप्त हो रहा है।
मंदिर मस्जिद गुरूद्वरा तक भी
अब धर्म नही बचा है।
और इंसानियत का मानो
जनाजा निकल चुका है।।

परिचय :- बीना (मध्यप्रदेश) के निवासी संजय जैन वर्तमान में मुम्बई में कार्यरत हैं। करीब २५ वर्ष से बम्बई में पब्लिक लिमिटेड कंपनी में मैनेजर के पद पर कार्यरत श्री जैन शौक से लेखन में सक्रिय हैं और इनकी रचनाएं राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच (hindirakshak.com) सहित बहुत सारे अखबारों-पत्रिकाओं में प्रकाशित होते रहती हैं। ये अपनी लेखनी का जौहर कई मंचों पर भी दिखा चुके हैं। इसी के चलते कई सामाजिक संस्थाओं द्वारा इन्हें सम्मानित किया जा चुका है। आप मुम्बई के नवभारत टाईम्स में ब्लॉग भी लिखने के साथ – साथ मास्टर ऑफ़ कॉमर्स की शैक्षणिक योग्यता रखने वाले संजय जैन कॊ लेख,कविताएं और गीत आदि लिखने का बहुत शौक है, आप लिखने-पढ़ने के ज़रिए सामाजिक गतिविधियों में भी हमेशा सक्रिय रहते हैं।
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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