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सावित्री महल

राकेश कुमार तगाला
पानीपत (हरियाणा)

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सात साल से वह उसकी बाट जोह रही थी। अब तो उसकी आँखो से आँसू भी आने बन्द हो गए थे। बस उदासी ही उसके साथ रह गई थी। वह आस-पड़ोस में भी बहुत कम जाती थी। उसकी हालत दिन-प्रतिदिन खराब होती जा रही थी। अपने गुजारे लायक थोड़ा बहुत कमा लेती थी। घर में नाममात्र का सामान रह गया था। सब कुछ धीरे-धीरे बिक चुका था। पर पति महेश का कुछ भी पता नहीं चल सका था। घर पूरी तरह खँडहर में बदलता जा रहा था। यह वही घर था जिसमें वह हजारों सपनें लेकर आई थी। महेश ने भी उसका साथ निभाने की कसमें खाई थी।कितने खुश थे वो दोनों अपनी छोटी सी गृहस्थी में? उसके अधिक सपनें नहीं थे। वह तो सिर्फ पति का साथ चाहती थी।
वह आज भी उस मनहूस दिन को कोसती थी। जब उसने मजाक ही महेश से महल बनवाने की बात कह दी थी। उसने यही कहा था कि तुम मुझें कितना प्यार करते हों? बहुत प्यार, तुम बताओ। तुम्हें मेरे प्यार का क्या सबूत चाहिए? तुम जो कहोगी, मैं तुम्हारे लिए कर दूँगा। सच कह रहे हो। हाँ बिल्कुल सच।
तो ठीक हैं, तुम भी मेरे लिए एक महल बनवा दो। ताजमहल की तरह। महेश थोड़ी देर सोचते रहे, गुमसुम। कुछ दिनों में ही उन्होंने विदेश जाने का फैसला कर लिया था। मैं लाख समझतीं रही। मैं तो मजाक कर रही थी। पर उसने मेरी एक ना सुनी।
उसके बाद से आज तक उसकी कोई खोज खबर नहीं मिली। कभी-कभी मन में आता, वही बस गया होगा। उसे कोई मिल गई होगी, प्यार करने वाली। घर बस गया होगा उसका। अब उसे मेरी याद क्यों आएगी? कभी वह खुद को समझाने लग जाती। नहीं-नहीं वह मुझें नहीं छोड़ सकते। मैं ही उनकी मुमताज हूँ सभी सगे-संबंधियों ने भी उसकी वापसी की उम्मीद छोड़ दी थी। वे सभी सावित्री को समझा कर थक चुके थे।बीमारी ने उसके रूप को भी बिगड़ कर रख दिया था। जब वह शादी के बाद इस घर में आई थी। सभी उसकी सुंदरता पर हैरान थे। उसकी तारीफ करते नहीं थकते थे। महेश तो उसे अपने सामने से हटने ही नहीं देता था। वह मीठी-मीठी नोक-झोंक उसे आज भी गुदगुदा जाती। वह अकेली ही उन पलों को याद करके हँस पड़ती। देखने वाले उसे पागल कहतें।
एक सुबह गाँव में शोर था। महेश लौट आया हैं। उसने शहर में बहुत बड़ा महल बनाया है। उस महल का नाम सावित्री महल रखा है। सभी उसके घर के बाहर खड़े थे। सावित्री की तबियत बहुत खराब थी। उससे चला भी नहीं जा रहा था। वह महेश की बाहों में ही आखिरी साँस ले रही थी। महेश उसे बार-बार यही कह रहा था। चलो सावित्री, अपने महल में। उसके आखिरी शब्द थे तुमनें मेरे लिए सचमुच महल बनवा दिया, सावित्री महल। महेश उसे झकझोर रहा था। पर सावित्री सब कुछ छोड़ के जा चुकी थी।

परिचय : राकेश कुमार तगाला
निवासी : पानीपत (हरियाणा)
शिक्षा : बी ए ऑनर्स, एम ए (हिंदी, इतिहास)
साहित्यक उपलब्धि : कविता, लघुकथा, लेख, कहानी, क्षणिकाएँ, २०० से अधिक रचनाएँ प्रकाशित।
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।


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