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सहेजना

अर्चना तिवारी
वड़ोदरा (गुजरात)

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हम औरतें सहेजने का हुनर
खुद ब खुद सीख जाती है
बचपन की यादों को सहेज
मायके से विदा होती हैं
जिंदगी के सुखद पलों को
दोस्तों के संग बिताए किस्सों को
सहेजती किसी खजाने की तह में
नहीं होती है ऊब कभी उन्हें
पुरानी यादों में डूबने पर
घंटों खुद से खुद ही बातें करती हैं
खुद की तलाश में विचरती हैं
सहेज न पाती है वह
अपनों से मिली उपेक्षा को
बेवजह के दिए उनके पीड़ा को
उस दर्द को
असह्य हो निकल पड़ती जब
सैलाब आ जाता अश्कों का
तरती उबरती रहती उसमें
सहेज न पाती बिखरती
सागर की लहरों को
दिखा न पाती अपने नासूर को

परिचय :- अर्चना तिवारी
निवासी : वड़ोदरा (गुजरात)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।


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