Friday, November 15राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर आपका स्वागत है... अभी सम्पर्क करें ९८२७३६०३६०

सर्वपल्ली डॉ.राधाकृष्णन : महान व्यक्तित्व

सुधीर श्रीवास्तव
बड़गाँव, जिला-गोण्डा, (उ.प्र.)

********************

                    प्रख्यात दर्शन शास्त्री, महान हिंदू विचारक, चिंतक, शिक्षक सर्वपल्ली डॉ.राधाकृष्णन का जन्म ०५ सितम्बर १८८८ में मद्रास (अब चेन्नई) से करीब २०० किमी. दूर तिरूमती गांव में गरीब ब्राह्मण (हिंदू) परिवार में हुआ था। राधाकृष्णन चार भाई व एक बहन थी। इनके पिता सर्वपल्ली विरास्वामी बहुत विद्वान थे। इनकी माता का नाम सिताम्मा था। इनकी प्राथमिक शिक्षा गाँव में ही हुई। गरीबी के कारण इनके पिता इन्हें पढ़ाने के बजाय मंदिर का पुजारी बनाना चाहते थे।
आगे की शिक्षा के लिए इन्हें क्रिश्चियन मिशनरी संस्था लुथर्न मिशन स्कूल तिरूपति में प्रवेश दिलाया गया। जहाँ ये सन् १८९६ से १९०० तक चार साल रहे। सन् १९०० में बेल्लूर के शिक्षा ग्रहण करने के उपरांत मद्रास क्रिश्चियन कालेज, मद्रास में अपनी स्नातक शिक्षा प्रथम श्रेणी के साथ इतिहास, मनोविज्ञान व गणित में विशेष योग्यता से पास की। १९०६ में दर्शन शास्त्र में मास्टर डिग्री हासिल करने वाले राधाकृष्णन को पूरे शैक्षणिक जीवन भर स्कालरशिप का लाभ मिला। १९०९ में मद्रास प्रेसीडेंसी कालेज में दर्शन शास्त्र का अध्यापक,१९१६ में सहायक प्राध्यापक रहे राधाकृष्णन जी को मैसूर यूनिवर्सिटी में दर्शन शास्त्र का प्रोफेसर चुन लिया गया। यही नहीं इसके बाद इन्हें आक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी, इंग्लैंड में भारतीय दर्शन शास्त्र का शिक्षक बनने का गौरव भी मिला। ४० वर्षों तक इनका शैक्षणिक कार्यकाल चला।
कम उम्र में ही इनका विवाह इनकी दूर की चचेरी बहन दस वर्षीय सिवाकुम से १९०४ में हुआ। सिवाकुम को तेलगू भाषा के अच्छे ज्ञान के साथ अंग्रेज़ी भाषा का भी ज्ञान था। पाँच बेटियों और एक बेटेे (सर्वपल्ली गोपाल, देश के बड़े इतिहास कारक थे) के पिता डाक्टर राधाकृष्णन शिक्षा को सर्वाधिक महत्वपूर्ण मानते थे। शिक्षा के प्रति गहन रूझान का परिणाम यह था कि वे न केवल काफी विद्वान थे, बल्कि उनमें सदैव ही कुछ सीखने की ललक भी बनी रही। उन्होंने जिस कालेज से मास्टर डिग्री ली थी वहीं के उप कुलपति बनाए गये, लेकिन एक वर्ष में ही वे बनारस यूनिवर्सिटी के उप कुलपति नियुक्त हो गये। इन्होंने दर्शन शास्त्र पर कई किताबें भी लिखीं।
इनकी पत्नी सिवाकुम की मृत्यु १९५६ में हुई थी। भारतीय क्रिकेटर वीवी एस लक्ष्मण का संबंध भी इनके खानदान से जुड़ा है। विवेकानंद और वीर सावरकर का इनके जीवन पर गहरा असर था। इनके बारे गहन अध्ययन करनेवाले डाक्टर राधाकृष्णन को दर्शन शास्त्र में महारत हासिल था। हिंदुत्व को देश में प्रचार प्रसार करने, हिंदू धर्म को देश व पश्चिमी देशों में फैलाने का उन्होंने प्रयास किया।
भारतीय दर्शन शास्त्र में पश्चिमी सोच लाने में इनकी बड़ी भूमिका थी। डॉक्टर राधाकृष्णन का मत था कि देश बनाने में शिक्षकों की बड़ी भूमिका होने के कारण देश में शिक्षकों का दिमाग सबसे उत्कृष्ट होना चाहिए।
आजादी के बाद पंडित जवाहरलाल नेहरु के विशेष आग्रह पर डॉक्टर राधाकृष्णन संविधान निर्मात्री सभा के सदस्य के रूप में १९४७ से १९४९ तक कार्य किया और अपने आचरण से सभी की प्रशंसा हासिल की। वे अनेक विश्वविद्यालयों के चेयरमैन भी रहे।
विदित रहे कि पंडित नेहरु द्वारा १४ -१५ अगस्त १९४७ की मध्य रात्रि आजादी की घोषणा करने वाले हैं, की खबर अकेले डॉक्टर राधाकृष्णन को ही थी। अपने अकादमिक जीवन से आगे बढ़ते हुए राजनीति में कदम रखा। १३ मई १९५२ को देश के पहले उप राष्ट्रपति के रूप में डॉक्टर राधाकृष्णन ने दस वर्षों १३ मई १९६२ तक कार्य किया।१३ मई १९६२ को वे देश के दूसरे राष्ट्रपति चुने गये। जहाँ चुनौतियों ने उनके मार्ग में बाधाएं खड़ी कर रखी थी। चीन और पाकिस्तान से युद्ध की विभीषिका, चीन से हार का दंश, दो प्रधानमंत्रियों की मृत्यु का दुःख भी इन्हें अपने कार्यकाल में देखना पड़ा। इनके राष्ट्रपति बनने पर जाने माने दार्शनिक बर्टेड रसेल ने कहा था कि महान भारतीय गणराज्य ने एक दार्शनिक को राष्ट्रपति बनाकर प्लेटो को सही मायने में श्रद्धांजलि दी है और एक दार्शनिक होने के तौर पर मैं अत्यंत प्रसन्न हूंँ। उनके राष्ट्रपति के कार्यकाल में हफ्ते में दो दिन बिना अप्वाइंटमेंट के कोई भी उनसे मिल सकता था। राष्ट्रपति बनने के बाद अमेरिका के व्हाइट हाउस हेलीकॉप्टर से जाने वाले वे पहले व्यक्ति थे। गैर परम्परावादी राजनयिक डॉक्टर राधाकृष्णन देर रात होने वाली बैठकों में सिर्फ दस बजे तक ही भाग लेते थे। क्योंकि उनके सोने का समय हो जाता था। डाक्टर राधाकृष्णन को १९५४ में भारत के पहले सर्वोच्च नागरिक सम्मान से सम्मानित किया गया। इसके पूर्व सन् १९१३ में ब्रिटिश सरकार ने ‘सर’की उपाधि से सम्मानित किया था। डॉक्टर राधाकृष्णन के सम्मान में १९६२ से ही इनका जन्मदिन ०५ सितंबर शिक्षक दिवस के रूप घोषित हुआ।
विदित है कि दुनियाँ के सौ से अधिक देशों में अलग अलग तिथियों को शिक्षक दिवस मनाया जाता है।१९६२ में ही डॉक्टर राधा कृष्णन
ब्रिटिश एकादमी के सदस्य भी बनाए गये। पोप जान पाल ने जहाँ डॉक्टर राधाकृष्णन को ‘गोल्डेन स्पर’ भेंट किया गया, वहीं इंग्लैंड सरकार ने ‘आर्डर आफ मेरिट’ सम्मान से भी नवाजा। यूनेस्को में १९४६ में भारतीय प्रतिनिधि के रूप में भी रहे।
दर्शन शास्त्र पर उन्होंने कई किताबें लिखीं। जिनमें ‘गौतम बुद्ध:जीवन और दर्शन’, ‘भारत और विश्व’, ‘धर्म और समाज’ शामिल हैं डॉक्टर राधाकृष्णन मूलतः अंग्रेजी में ही लिखते रहे थे। आगे राष्ट्रपति न बनने के अपने स्पष्ट विचारों को उन्होंने ने १९६७ में गणतंत्र दिवस के अवसर पर राष्ट्र के नाम अपने संबोधन में ही स्पष्ट रूप से रेखांकित कर दिया था। लम्बी बीमारी के चलते महान शिक्षाविद राजनेता डाक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन का १७ अप्रैल १९७५ को निधन हो गया।शिक्षक दिवस के दिन देश के विख्यात/उत्कृष्ट शिक्षकों को
सम्मानित भी किया जाता है।
मरणोपरांत इसी वर्ष १९७५ में ही डाक्टर राधाकृष्णन को पहले गैर ईसाई व्यक्ति के रूप में अमेरिकी सरकार ने टेम्पलटन पुरस्कार से सम्मानित भी किया। यह पुरस्कार धर्म के क्षेत्र में उत्थान के लिए दिया जाता है। डाक्टर राधाकृष्णन को चालीस वर्षो तक आदर्श शिक्षक की भूमिका और शिक्षा क्षेत्र में उनके योगदान को कभी भी भुलाया नहीं जा सकता। शिक्षक दिवस के अवसर पर उनके लिए सच्ची श्रद्धांजलि यही होगा कि शिक्षा क्षेत्रों से संबद्ध लोग अपनी भूमिका का पूरी ईमानदारी से निर्वहन करें और देश के विकास में अपना पूर्ण योगदान दें।

परिचय :- सुधीर श्रीवास्तव
जन्मतिथि : ०१.०७.१९६९
पिता : स्व.श्री ज्ञानप्रकाश श्रीवास्तव
माता : स्व.विमला देवी
धर्मपत्नी : अंजू श्रीवास्तव
पुत्री : संस्कृति, गरिमा
पैतृक निवास : ग्राम-बरसैनियां, मनकापुर, जिला-गोण्डा (उ.प्र.)
वर्तमान निवास : शिवनगर, इमिलिया गुरूदयाल, बड़गाँव जिला-गोण्डा, उ.प्र.
शिक्षा : स्नातक, आई.टी.आई.,पत्रकारिता प्रशिक्षण (पत्राचार)
साहित्यिक गतिविधियाँ : विभिन्न विधाओं की कविताएं, कहानियां, लघुकथाएं, आलेख, परिचर्चा, पुस्तक समीक्षा आदि का १०० से अधिक स्थानीय से लेकर राष्ट्रीय स्तर की पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशित। दो दर्जन से अधिक संकलनों में रचनाओं का प्रकाशन।
सम्मान : एक दर्जन से अधिक सम्मान पत्र।
विशेष : कुछ व्यक्तिगत कारणों से १७-१८ वषों से समस्त साहित्यिक गतिविधियों पर विराम रहा। कोरोना काल ने पुनः सृजनपथ पर आगे बढ़ने के लिए विवश किया या यूँ कहें कि मेरी सुसुप्तावस्था में पड़ी गतिविधियों को पल्लवित होने का मार्ग प्रशस्त किया है।
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.com पर अणु डाक (मेल) कीजिये, अणु डाक करने के बाद हमे हमारे नंबर ९८२७३ ६०३६० पर सूचित अवश्य करें …🙏🏻

आपको यह रचना अच्छी लगे तो साझा जरुर कीजिये और पढते रहे hindirakshak.com राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच से जुड़ने व कविताएं, कहानियां, लेख, आदि अपने चलभाष पर प्राप्त करने हेतु राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच की इस लिंक को खोलें और लाइक करें 👉 👉 hindi rakshak manch  👈… राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच का सदस्य बनने हेतु अपने चलभाष पर पहले हमारा चलभाष क्रमांक ९८२७३ ६०३६० सुरक्षित कर लें फिर उस पर अपना नाम और कृपया मुझे जोड़ें लिखकर हमें भेजें…🙏🏻

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *