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संन्यास

संन्यास

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रचयिता : राम शर्मा “परिंदा” 

तुम्हें मुबारक धन-दौलत
मैं भगतसिंह-सुभाष ले लूं ।
उथल-पुथल मची जग में
अभी कैसे संन्यास ले लूं ।।
भावों को शुद्ध करना है
अपनो से युद्ध करना है
जो है विकारों  से  युक्त
जगा उन्हें बुद्ध करना है
भूखों के लिए अन्न मांगू
स्वयं हेतु उपवास ले लूं ।
उथल-पुथल मची जग में
अभी कैसे संन्यास ले लूं ।।
धर्मो में ठेकेदार आ गये
करने को  प्रचार आ गये
खुद धर्म का मर्म न जाने
करने को सुधार आ  गये
गीदड़ों को गले लगा कर
शेरों के लिए घास ले लूं  ?
उथल-पुथल मची जग में
अभी कैसे संन्यास ले लूं ।।
परिचय :- नाम – राम शर्मा “परिंदा” (रामेश्वर शर्मा) पिता स्व जगदीश शर्मा आपका मूल निवास ग्राम अछोदा पुनर्वास तहसील मनावर है। आपने एम काम बी एड किया है वर्तमान में आप शिक्षक हैं आपके तीन काव्य संग्रह १ परिंदा , २- उड़ान , ३- पाठशाला प्रकाशित हो चुके हैं और विभिन्न समाचार पत्रों में आपकी रचनाओं का प्रकाशन होता रहता है, दूरदर्शन पर काव्य पाठ के साथ-साथ आप मंचीय कवि सम्मेलन में संचालन भी करते हैं। आपके साहित्य चुनने का कारण – भावाभिव्यक्ति का माध्यम है अन्य अभिरुचि – अध्यात्मिक एवं ज्योतिष संबंधी शो …

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