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बेड़ा पार लगा दो

अंजनी कुमार चतुर्वेदी
निवाड़ी (मध्य प्रदेश)
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करते जो दिन-रात परिश्रम,
फिर भी सुख ना पाते।
जिनका रक्त, स्वेद बन बहता,
वे मजदूर कहाते।

मजदूरों की देख दुर्दशा,
पीड़ा बढ़ती जाती।
मर्मांतक पीड़ा होती है,
पत्थर होती छाती।

पेट पीठ में मिला हुआ है,
हुआ रंग भी काला।
इनकी चिंता नहीं किसी को,
कोई नहीं रखवाला।

पीर पर्वताकार हो चली,
कोई नहीं सहारा।
भूखे पेट अल्प वस्त्रों में,
जीवन सदा गुजारा।

घर को छोड़ पलायन करते,
झर झर आँसू बहते।
जाड़ा, गर्मी, ओला, पाला,
बिना वस्त्र तन सहते।

इनका खून पसीना बनकर,
खुशहाली लाता है।
इनसे खुशी मिले जन-जन को,
यह इनको भाता है।

सदा सृजन करता रहता है,
है प्रासाद बनाता।
अपनी खुशहाली के सँग-सँग,
सबकी खैर मनाता।

श्रम सीकर से सींच- सींच कर,
ऊँचे महल बनाता।
गगन चूमते इन भवनों में,
स्वयं नहीं रह पाता।

धन वैभव नजदीक न आता,
सदा गरीबी गहना।
सदा कर्मरत रहते फिर भी,
सब कुछ पड़ता सहना।

सदा दूर रहकर शिक्षा से,
खुद की दशा बिगाड़ी।
सारी दुनिया इनसे रोशन,
चले न इनकी गाड़ी।

हे भगवान संभालो इनको,
इनका भाग्य जगा दो।
बीच भँवर में इनकी नैया,
बेड़ा पार लगा दो।

परिचय :अंजनी कुमार चतुर्वेदी
निवासी : निवाड़ी (मध्य प्रदेश)
शिक्षा : एम.एस.सी एम.एड स्वर्ण पदक प्राप्त
सम्प्रति : वरिष्ठ व्याख्याता शासकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय क्रमांक २ निवाड़ी
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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