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उदास फूल

पारस परिहार
मेडक कल्ला
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वह मुझे देख रहा था और मैं उसे…
लेकिन…
लेकिन… हम दोनों में से किसी ने भी कुछ भी पूछने की हिम्मत नहीं की।
ये माजरा करीब आधे घंटे तक यू ही चलता रहा।
आखिरकर…मैं समझ गया कि गलती मेरी ही थी क्योंकि उसको अपना जीवन समाप्त किए पूरे बारह महीने हो चुके थे, सो कैसे बोलता और मैं तो एक जिंदा इंसान था पूछना तो मुझे चाहिए था। फिर एकाएक स्मरण हो आया कि किससे पूछूं वह तो बोलता ही नहीं था।
उसको एक दुकानदार नए वर्ष की नई तारीख को तोड़कर लाया था और नए वर्ष की नई तारीख को ही बाहर फेंका गया था। भाग्यवश…मै भी उसी दिन उस दुकान पर पहुंच गया।
वह फूल मुझे उदास भाव से अपनी आंखों से देख रहा था। मानो कह रहा हो जब मैं डाली पर था तब सुंदर लग रहा था, वहां मेरी इज्जत थी, लोग मुझे बड़े आदर से देखते थे, हर रोज मुझे पानी दिया जाता था और वही लोग आज मुझे अपने पैरों के नीचे रौंदते चले जा रहे हैं।
उसकी आंखों को देखकर मुझे समझते देर नहीं लगी और उस फूल को मैंने तुरंत उठा लिया और हो लिया अपने घर की ओर।
उनके बीजों को मैंने पृथ्वी पर थोड़ी सी जगह पर मिट्टी पोली करके पानी डालकर जमीन में दबा दिये।
करीब दस दिनों के बाद…
सभी बीज अपने ऊपर लगे सुरक्षा कवच को तोड़कर कोमल रूप बनकर बाहर निकल आए थे।
उस समय मुझे खुशी की सीमा न रही थी। वह छोटे-छोटे पौधे लगभग बीस से पच्चिस दिन में बड़े-बड़े पौधे बन गए।
कुछ दिनों के बाद उन फूलों के ऊपर सुंदर कलियां खिलने लगी और रंग-बिरंगे सुंदर फूल आए।
एकाएक मुझे स्मरण हो आया कि वह फूल उस दिन मुझसे यही कहने की कोशिश कर रहा था।
उन पौधों को हर रोज में पानी देता था। वे पौधे बगीचे में इस प्रकार खिल और खेल रहे थे मानो उनको किसी दुश्मन के हाथों से सुरक्षित बाहर निकाला हो, उनको देखकर मुझे भी उनके पास खेलने का मन हुआ पर कुछ सोचकर अपनी इच्छा को अंदर ही अंदर दबा लिया। एक दिन मुझे आवश्यक रूप से कहीं बाहर जाना था, उस दिन मैंने जल्दी में उन फूलों को पानी नहीं दिया था, पर चलते वक्त उन्होंने मुझे आभास करा दिया कि उन्हें पानी की बहुत जरूरत है। मैंने वापस मुड़कर उनको चार-पांच बाल्टी पानी दिया और हो लिया अपनी राह।
उस दिन मुझे जितनी खुशी हो रही थी उतनी ही दिल में धड़कन भी तेज थी।
पर…पता नहीं क्यों…?
जब मैं शाम को वापस घर आया तो वही खुशी उसी दुख में बदल चुकी थी, क्योंकि घर पर शकीना (भैंस) और उसकी छोटी सी प्यारी बहन ने मिलकर उन फूलों की ईहलीला समाप्त कर दी थी।
उनमें से केवल एक ही सूखा हुआ फूल नीचे जमीन पर पड़ा हुआ था और उसी निस्तेज भाव से मुझे देख रहा था जैसे उस दिन देख रहा था…!!

परिचय :- पारस परिहार
निवासी : मेडक कल्ला
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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