माया मालवेन्द्र बदेका
उज्जैन (म.प्र.)
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सम्पूर्ण समर्पण से अपने पति को प्यार करती थी दयावती। उसे तो उसके पति में ईश्वर नजर आता था।
पति जब तक घर परिवार में रहा उसके साथ ठीक रहा, क्योंकि बड़े परिवार में अक्सर पति-पत्नी रात्रि विश्राम पर ही मिल सकते हैं।दो कमरे का घर और दस लोग।
हर समय चहल-पहल शुरू रहती थी। एक बेटी हुई, वह भी सासू माँ के सपनों को तोड़कर, क्योंकि पोता होता फिर उसका पड़पोता होता वह सोने की निशनी चढ़ती। दयावती के पति की नौकरी बदली, बाहर नौकरी के लिए गया तब पत्नी को घर परिवार में रखा फिर ले गया फिर छोड़ गया। पारिवारिक कामकाज चलते रहते थे।
बाहर रहते पड़ोसी की शादीशुदा लड़की से मन लगा बैठा। पड़ोसी की बेटी आगे की पढ़ाई के लिए मायके में रहती थी। वह साथ रहकर भी साथ नहीं थी, हर समय वह लड़की प्रताड़ना पर उतर आई थी। दयावती ने उस लड़की को समझाने की बहुत कोशिश की, पर वह उसके पति के कारण ही बहुत बेशर्म हो गई थी। अपनी नन्ही सी बेटी को लेकर वह रोती रहती और उसका पति और वह लड़की बाहर से दरवाजा बंद मिलते रहते थे। एक दिन उसका पति नौकरी पर गया तो वह आई और बोली अब मैं तेरे पति के साथ शादी कर लूंगी अगर तूने ज्यादा समझदार बनने की कोशिश की।
बेटी की खातिर वह खून के घूंट पी गई। ईश्वर पर सब छोड़ दिया। वह हारी नहीं थी, पर पति के व्यवहार ने बहुत आहत कर दिया था। एक जीवित शरीर था मन मर चुका था। समय ने पलटा खाया और ईश्वर ने न्याय किया। एक दिन दोनों को रात में उस लड़की के पति ने देख लिया। वह उससे मिलने आया था। उसने उसी क्षण लड़की के माता-पिता को कहा की यदि आपकी बेटी को आप मेरे साथ भेज देते हैं तो में इसे माफ कर दूंगा। समाज में अपने घर की बदनामी नहीं देख सकता। लड़की के माता-पिता भी सकते में थे। जब दयावती ने अपनी पड़ोसन को यह बात बताई, तब वह बोली थी, नहीं यह तो पढ़ने के लिए आपके पति के पास आती है।
फिर उसके बाद उसका पति ले गया लेकिन दयावती का जीवन नर्क हो गया। उसका पति अब उसका नहीं था। जीवन के थपेड़े छूते हुए वह चुप रही। औरत थी, धरती थी, खानदानी थी, संस्कारी थी। सासू माँ को गर्व था, मेरा बेटा राजकुमार जैसा दिखता है अभी भी लड़कियों की कतार लग जायेगी। दयावती अपने अंदर अपमान का अथाह सागर भर चुकी थी। उफन कर बाहर आई…. बहुत बढ़िया सासू माँ आपके दामाद भी तो सुंदर है, चलो ऐसा करते हैं आपके बेटे के साथ आपके दामाद को भी और अवसर दिया जाय। तब से अब तक वह खराब खानदान और खराब संस्कारों की उपाधि लेकर जी रही है।
संस्कार खराब किसके?
परिचय :-
नाम – माया मालवेन्द्र बदेका
पिता – डाॅ. श्री लक्षमीनारायण जी पान्डेय
माता – श्रीमती चंद्रावली पान्डेय
पति – मालवेन्द्र बदेका
जन्म – ५ सितम्बर १९५८ (जन्माष्टमी) इंदौर मध्यप्रदेश
शिक्षा – एम• ए• अर्थशास्त्र
शौक – संस्कृति, संगीत, लेखन, पठन, लोक संस्कृति
लेखन – चौथी कक्षा मे शुरुवात हिंदी, माळवी,गुजराती लेखन
प्रकाशन – पत्र पत्रिका मे हिन्दी, मालवी में प्रकाशन।
पुस्तक प्रकाशन – १ मौन शबद भी मुखर वे कदी (मालवी) २ – संजा बई का गीत
साझा संकलन – काव्य गंगा, सखी साहित्य, कवितायन, अंतरा शब्द शक्ति, साहित्य अनुसंधान
लघुकथा – लघुत्तम महत्तम, सहोदरी
माळवी – मालवी चौपाल (मालवी)
विधा – हिंदी गीत, भजन, छल्ला, मालवी गीत, लघुकथा हिन्दी, मालवी व्यंग, सजल, नवगीत, चित्र चिंतन, पिरामिड, हायकू, अन्य विधा मे रचना!
सम्मान – हिंदी रक्षक मंच इंदौर म.प्र. (hindirakshak.com) द्वारा हिंदी रक्षक २०२० राष्ट्रीय सम्मान, झलक निगम संस्कृति सम्मान, श्रीकृष्ण सरल शोध संस्थान गुना द्वारा सम्मान, संस्कृत महाविधालय थाईलैंड द्वारा सम्मान, शब्द प्रवाह सम्मान, हल्ला गुल्ला मंच सम्मान रतलाम, मालवी मिठास मंच द्वारा, नारी शक्ति मंच जावरा, औदिच्य ब्राह्मण समाज,गुरूव ब्राह्मण समाज द्वारा सम्मानित, प्रतिकल्पा सम्मान जमुनाबाई लोकसंस्थान उज्जैन, द्वारा मालवी लेखन के लिए पांडुलिपी पुरस्कार, दैनिक अग्निपथ कवि साहित्यकार सम्मान, शुभसंकल्प संस्था इंदौर, शुजालपुर मालवी न्यास से सम्मानित, संवाद मालवी चौपाल, संजा और मांडना के लिए पुरस्कार
मुख्य ध्येय – हिंदी के साथ आंचलिक भाषा और लोककृति विशेष संजा को जीवंत रखना, बेटी बचाओ मुहिम मे मालवी हिन्दी मे पंक्तिया, संजा, मांडना संरक्षण पच्चीस वर्ष से अधिक भारत से बाहर रहकर हिंदी लेखन का प्रसार, आंचलिक बोली मालवी का प्रसार, मारिशस, थाईलैंड, हिंदी सम्मेलन में उपस्थिति व थाईलैंड में हिंदी गोष्ठी समूह में सहभागिता की।
संरक्षक – झलक निगम संस्कृति, संरक्षक शब्द प्रवाह
संस्थापक – यो माया को मालवो, या मालवा की माया।
अध्यक्ष – संस्कृति सरंक्षण
पुरस्कार प्रदत – “मालवा के गांधी” डॉ लक्ष्मीनारायण पांडेय “मालवा रत्न” स्मृति पुरस्कार!
निवासी – उज्जैन (म.प्र.)
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