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कान्हा बनाम खान नदी

मोहब्बत को ही इंसानियत
की शान कहते हैं
अध्यापक हूं शासकीय उच्चतर
माध्यमिक विद्यालय का
गुरान में मुझे “आशु कवि”
के.पी. चौहान कहते है
कान्हा नदी का उद्गम स्थान है
इंदौर जिले का मुंडी गांव
जीसे आज लोग खान कहते हैं
राजवाड़ा इंदौर की कृष्णपुरा छत्री पर
संगम हुआ सरस्वती नदी से
और त्रिवेणी में शिप्रा नदी मैं हुआ
संगम जिसे शनि मंदिर पर
त्रिवेणी का घाट महान कहते हैं
कान्हा नदी कहूं तुझे या खान
क्या कहकर करूं मां
सरिता तेरा गुणगान
तट पर बैठा हूं तेरे और
कविता की पंक्तियों में
लिख रहा हूं मां तेरा बखान
मेरे गांव को कहते हैं गुरान
निश दीन कल-कल करती
स्वच्छ और निर्मल जल की
धारा बहा करती थी
जो तेरी महानता की
कहानी कहा करती थी
तेरे ही तट पर अपना
बचपन जिया मैंने
जिसका पानी कई बार
पिया मैंने अब देख कर दुर्गति
इस अमृत जैसे दूषित जल की
भूल गया हूं मैं वह
नदी बीते हुए कल की
आज मैं कैसे तेरा गुणगान करूं
अब कैसे में तुझ में स्नान करूं
एक समय था जब बड़े ही
निराले हुआ करते थे तेरे ठाठ
ऊंचे ऊंचे किनारे लंबे-लंबे घाट
जहां सहपाठी मित्रों के साथ
विचरण किया करते थे हम
खूब खेला करते थे तेरे
निर्मल जल से ओडी पाठ
(औडी -मायने पुराना कुआं या बावड़ी)
अपना जीवन जी रहे हैं
हम तेरी कृपा छाव में
आज हरियाली और खुशहाली
हे पूरे गांव में
बहती है तू यहां एक
विशाल स्वरूप तेरा
पानी भी जहां बहुत है गहरा
तेज बहती है तू
तेरे किनारे पर अनेक
जीव जंतुओं का है डेरा
जहां पशु-पक्षी भी करते हैं
बसेरा वर्षा ऋतु में बाढ़ के कारण
पीली मिट्टी के कटाव से
बन जाती है लकीर
जो प्रतिवर्ष के उतार-चढ़ाव का
हिसाब बताया करती है
भलाई करना है तेरा काम
तू नहीं किसी का बुरा करती है
तेरे किनारे पर हुआ करते थे
पानी भरने और स्नान के घाट
तुझे पार करने के बाद ही
मिलती थी हमें घर जाने की बाट (रास्ता)
तूने दिए हैं हमें कई उपहार
बीच मझधार में खुली रेती पर
खेती की हुआ करती थी
बहार तरबूज-खरबूज-ककड़ी
और खीरे की होती थी भरमार
रेती के टापू के दोनों और
बहा करती थी
स्वच्छ जल की तेज धार
पानी पीने के लिए तेरे किनारे
पर बना रखे थे
गांव वालों ने कई सारे झीरे
(मायने छोटे कुए कुंडी)
प्रातः काल उठकर प्रतिदिन
मित्र बंधुओं सहित सभी
सहपाठी खेलते थे खूब पकड़ा पार्टी
मिलकर तेरे तट पर आते थे
तट पर बनी सारनी
(जिससे नदी से बावड़ी में पानी आता है)
की चट्टान के ऊपर चढ़ जाते थे
वहां से उल्टी उड़ी लगाते थे
पानी के अंदर से गोता लगाकर
किनारे पर आ जाते थे
इतना साफ स्वच्छ और
निर्मल जल हुवा करता था तेरा
कि हम उसमें सिक्का डाल देते थे
फिर गोते मारकर तेरे तल से
हम सिक्का निकाल लाते थे
जब तक किसी के बुलावे की
आवाज नहीं आ जाती थी
हम खूब नहाते थे
कि कब तक उछल कूद करोगे
और नाहओगे
क्या आज स्कूल नहीं जाओगे
सब की पिटाई होगी
अगर देर से पाठशाला जाओगे
फिर जल्दबाजी में
हम नदी से बाहर आते थे
तुरंत कपड़े पहन कर
घर भाग जाते थे
वह दिन याद कर जब मैं
आज तेरे तट पर आता हूं
सच कहता हूं है कान्हा नदी
मैं तुझे खान नदी कहने में
शर्मिंदा हो जाता हूं
काली नदी पड़ गया है
तेरा नाम यह मैं नहीं सुन पाता हूं
तेरे ही जल से होती है सिंचाई
जिससे पैदा हुए साग सब्जी
और अन्न सबके साथ में भी खाता हूं
खूब हो रही है फसल और खेत लहराते हैं
समृद्ध हुआ है किसान
मैं तेरा एहसान नहीं भूल पाता हूं
फसल देखकर खुश हो जाते हैं
गरीबी दूर होने से लोग
दिखाने लगे हैं कई तरह के खेल
पुरानी झोपड़िया और कच्चे घर
तोड़कर बना लिए हैं पक्के महल
तेरी ही वजह से
गांव और शहरों की अब
बदल गई है शान
हे नदी माता तू जरूर मैली हो गई
परंतु धनवान और
समृद्ध हो गया इंसान
तेरी यह मट मेले और काले
जल वाली दशा देखकर
ऐसा लगता है
तेरे दूषित जल में ही
अब जीवन बसता है
मानो इसमें तेरी मंद- मंद और
लहराती व झिलमिलाती हुई धारा मैं
कीचड़ गंदगी और पॉलीथिन के साथ
कारखानों से जहरीला एसिड छोड़कर
दूषित जल की धारा नदी में मोड़ कर
गंदगी का अंबार खड़ा कर दिया है
शुद्ध जल अब जहरीला
और काला हो गया है
कान्हा नदी की जगह
अब नाला हो गया है
कितना नासमझ है इंसान
उसके दिमाग का दिवाला हो गया है
आज वह केवल पानी नहीं है
उसमें एसिड मिला है
जहर वाला जिसे पीने वाले
इंसान तो क्या पशु-पक्षी भी
एक घूंट तक नहीं पी सकते
और अगर गलती से भी पी लिया
तो वह अपना जीवन जी नहीं सकते
हे माता नदी तू है बड़ी महान
इंदौर कृष्णपुरा छत्रीयों के घाट पर
ब्रिज के नीचे दृश्य बनता है विहंगम
राजवाड़ा से पूर्व दिशा में
सरस्वती नदी का तुझमें हुआ है संगम
जहां पर माता अहिल्या बाई ने
बनवाए हैं सुंदर-सुंदर घाट
जहां पर प्रतिदिन नगर के
नर नारियां करते थे स्नान
कान्हा और सरस्वती नदी के
संगम तट पर भव्य प्राचीन
शिव मंदिर पर जल चढ़ाकर
किया करते थे ध्यान
इंदौर से अनेक गांव में होकर
गुजरते हुए बहती है तू
आने के गांव की
जीवनधारा रहती है तू
और उज्जैन के त्रिवेणी घाट पर
शिप्रा में मिलने से
त्रिवेणी की कथा कहती है तू
कान्हा सरस्वती और शिप्रा का
संगम हुआ जहां पर
उज्जैन जाने से पहले
यहां स्नान करते हैं
और शनि देव का ध्यान करते हैं
के घाट पर स्नान करके मानव प्राणी
अपने आप को मानता है महान
फिर उज्जैन नगरी पहुंचकर
राम घाट पर करते हैं स्नान
और महाकालेश्वर
भगवान का करते हैं ध्यान
जिससे कान्हा और
सरस्वती भी हो गई है महान
चौमासा के सावन में तो खूब आती है उफान
जीवनदायिनी त्रिवेणी घाट पर मिलकर
तीनों की एक हो जाती है
शान फिर भी लोग कहते हैं तुझे
कान्हा नदी की बजाय खान
तेरे तट पर बैठकर कविता
की इन पंक्तियों में
करता है जो तेरा बखान
निवासी है इंदौर जिले की सांवेर
तहसील का गांव गुरान का
कहते हैं जिसे “आशु कवि” के. पी .चौहान
के मोहब्बत को ही इंसानियत की शान कहते हैं
रहता हूं मैं इंदौर जिले की
सांवेर तहसील के गांव गुरान में
मुझे फोटोग्राफर के. पी. चौहान कहते हैं

.
परिचय :-  “आशु कवि” केदार प्रसाद चौहान के.पी. चौहान “समीर सागर” 
निवास – गुरान (सांवेर) इंदौर

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