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निर्दयी

डॉ. चंद्रा सायता
इंदौर (मध्य प्रदेश)

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               गांव के एक स्कूल में टीचर पांचवी कक्षा को पर्यावरण का पाठ पढ़ा रहे थीं। सभी बच्चे शांत भाव से सुन रहे थे, किंतु पलाश कुछ ज्यादा ज्यादा ही उत्साही लग रहा था। टीचर जी मेरी दादी भी पेड़ पौधों और पशु पक्षियों की सुंदर-सुंदर कहानियां सुनाती है। मुझे ऐसी कहानियां सुनना बेहद पसंद है।
“बहुत बढ़िया बेटा।” दादी की कहानियां सुनते समय आस पड़ोस के बच्चों को भी बुला लिया करो।” टीचर ने पलाश से कहा।
इतने में प्यूयू ने आकर टीचर को संदेश दिया “मैडम जी। आपको प्रिंसिपल साहब बुला रहे हैं।”
अंतिम पीरियड की समाप्ति में अभी पाँच मिनट बाकी थे अतः बच्चों की छुट्टी कर दी गई वे अपने अपने बसते बंद कर खेल के मैदान की ओर चल दिए। स्कूल से बाहर का रास्ता खेल के मैदान से होकर ही गुजरता था सभी बच्चे घर जाने की खुशी में भागे जा रहे थे पलाश थोड़ी दूर जाकर अमरूद के धराशायी पेड़ को देखकर ठिठक गया।
खेल के मैदान को चौड़ा किया जा रहा था इसलिए इस पेड़ को जड़ से उखाड़ दिया गया था।
पलाश भावुक होकर उसे निहार रहा था उसकी आंखें सजल हो उठीं। पलाश ने दोनों हाथों की मुठ्ठियों को खोल कर अपनी आंखें पोछ ली। ताकि कोई उसके आंसुओं का मजाक ना बना सके।
वह मन ही मन सोचने लगा की कक्षा में कितनी शिद्दत से पर्यावरण का पाठ पढ़ाया जाता है, किंतु असल में ये लोग कितने निर्दयी होते हैं।

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परिचय :- डॉ. चंद्रा सायता
शिक्षा : एम.ए.(समाजशात्र, हिंदी सा. तथा अंग्रेजी सा.), एल-एल. बी. तथा पीएच. डी. (अनुवाद)।
निवासी : इंदौर मध्य प्रदेश
लेखन : १९७८ से लघुकथा सतत लेखन
प्रकाशित पुस्तकें : १- गिरहें २- गिरहें का सिंधी अनुवाद ३- माटी कहे कुम्हार से
सम्मान : गिरहें पर म.प्र. लेखिका संघ भोपाल से गिरहें के अनुवाद पर तथा गिरह़ें पर शब्द प्रवाह द्वारा तृतीय स्थान
संप्रति : सहायक निदेशक (रा.भा.) कर्मचारी भविष्य निधि संगठन,श्रम मंत्रालय, भारत सरकार।


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