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बर्बादी की डगर

संजय जैन
मुंबई

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किताबो में पढ़ कर,
रेडियो में सुन कर।
चल चित्र को देखकर,
कहानी बड़ेबूड़ो से सुनकर।
मोहब्बत करने का मन,
दिल में पनापने लगा।
और लगा बैठे दिल ,
पड़ोसी की लड़की से।।

अब न दिल धड़कता है,
न सांसे ही चलती है।
ये कमवक्त मोहब्बत भी,
क्या बला होती है।
जो न जीने देती है,
न ही मरने देती है।
चलते फिरते इन्सान को,
एक लाश बना देती है।।

मोहब्बत के चक्कर में,
न जाने कितने लूट गये।
और कितने खुदा को,
पहले ही प्यारे हो गये।
जिसे मिल गई मोहब्बत,
वो आबाद हो गया।
नही तो जिंदा एक,
लाश बनके राह गया।।

किसी को इसने पागल,
बना कर छोड़ दिया।
तो किसीको घायाल करके,
बीच मजधार में छोड़ दिया।
इसलिए अब मोहब्बत के,
नाम से लोग घबराते है।
न खुद करते है और,
न किसीको सलाह देते है।।

परिचय :- बीना (मध्यप्रदेश) के निवासी संजय जैन वर्तमान में मुम्बई में कार्यरत हैं। करीब २५ वर्ष से बम्बई में पब्लिक लिमिटेड कंपनी में मैनेजर के पद पर कार्यरत श्री जैन शौक से लेखन में सक्रिय हैं और इनकी रचनाएं हिंदी रक्षक मंच (hindirakshak.com) सहित बहुत सारे अखबारों-पत्रिकाओं में प्रकाशित होते रहती हैं। ये अपनी लेखनी का जौहर कई मंचों पर भी दिखा चुके हैं। इसी के चलते कई सामाजिक संस्थाओं द्वारा इन्हें सम्मानित किया जा चुका है। आप मुम्बई के नवभारत टाईम्स में ब्लॉग भी लिखने के साथ – साथ मास्टर ऑफ़ कॉमर्स की शैक्षणिक योग्यता रखने वाले संजय जैन कॊ लेख,कविताएं और गीत आदि लिखने का बहुत शौक है, आप लिखने-पढ़ने के ज़रिए सामाजिक गतिविधियों में भी हमेशा सक्रिय रहते हैं।


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