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दौर ए ज़िन्दगी

रुखसाना बानो
अहरौरा, चुनार, (मिर्ज़ापुर)
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एक दौर वो भी था ज़िन्दगी का,
बातों की कीमत समझते थे लोग।

हाँ में हाँ कम मिलाते थे लोग,
शाम होते ही चौपले सजाते थे लोग।

चलता था दौर गुफ्तगू का,
अपनी-अपनी उलझन सुलझाते थे लोग।

मुलाक़ातों का सिलसिला था,
पड़ोसी के घर आते-जाते थे लोग।

दुःख हो या सुख हो, शादी हो या मय्यत,
मिलकर रस्म निभाते थे लोग।

गिले-शिकवे भी बहुत होते थे,
बाद नाराज़गी के हँसकर गले लगाते थे लोग।

घृणा, द्वेष तो था कल भी,
प्रेम से ईर्ष्या की आग बुझाते थे लोग।

लो आया दौर तरक्क़ी का,
स्वार्थ में दूसरों को गिराने लगे हैं लोग।

महफिले तो बहुत सजती हैं आज भी,
अब गले कम लगाते हैं लोग।

बस हाथ ही तो अब मिलते हैं,
नफरत के दिए दिल में जलाते हैं लोग।

रिश्ता कितना भी हो करीब का,
अब बहुत दूर का बताते हैं लोग।

परिचय :-  रुखसाना बानो
विद्यालय : कम्पोजिट विद्यालय अहरौरा
निवासी : अहरौरा, चुनार, (मिर्ज़ापुर)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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