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रोशनी की किरन

शरद सिंह “शरद”
लखनऊ

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दूर बहुत दूर एक रोशनी की
किरन दृष्टि गोचर होती है,
मन मयूर बिना कुछ विचार किए,
थिरक उठता है
पाॅव अनायास ही ता ता थैया की,
ताल पर थिरक उठते हैं,
मधुर शहनाई गूंज उठती है,
दिल के सूने आॉगन मे,
रोम-रोम पुलकित हो उठता है,
अनजाने मिलन से,
मन वीणा के हर तार से,
स्वर लहरी फूट पड़ती है
एक खूबसूरत स्वर्ग सा,
अहसास होने लगता है,
यूॅ अहसास होता है मानो,
कदम-कदम पर खुशियों के,
महकते फूलों की विशाल
चादर बिछी है,
मन चंचल हो दौड़ पड़ता
है इधर-उधर,
और अन्तस तल मे अनजानी सी
मस्ती छा जाती है
मानो कोई आवारा भॅवरा,
गुंजार करे हर डाली पर…..

परिचय :- बरेली के साधारण परिवार मे जन्मी शरद सिंह के पिता पेशे से डाॅक्टर थे आपने व्यक्तिगत रूप से एम.ए.की डिग्री हासिल की आपकी बचपन से साहित्य मे रुचि रही व बाल्यावस्था में ही कलम चलने लगी थी। प्रतिष्ठा फिल्म्स एन्ड मीडिया ने “मेरी स्मृतियां” नामक आपकी एक पुस्तक प्रकाशित की है। आप वर्तमान में लखनऊ में निवास करती है।


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