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रूहें भटकती

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रचयिता : संजय वर्मा “दॄष्टि”

प्यार के हंसीं पल
समय के साथ खिसक जाते
जैसे रेत  मुठ्ठी से खिसकती
निशा विस्मित नजरों  से देखते
वो स्थान जो अब
अपनी पहचान खो चुके
दरख़्त उग आए
इमारते  ऊँची हो गई
खिड़कियां चिड़ा रही
सड़कें हो गई  भूल भुलैया
प्रेम- पत्र के कबूतर मर चुके
आँखों से ख्वाब का पर्दा
उम्र के मध्यांतर पर गिर गया
कुछ गीत बचे
वो जब भी  बजे
दिलों के तार छेड़ गए
प्यार के हंसी पल
वापस रेत मुठ्ठी में भर गए
दिल से ख्वाब हटते नहीं
शायद रूहें भटकती इसलिए
क्योंकि उन्होंने कभी
प्यार का
खुमार लिपटा  हो

परिचय :- नाम :- संजय वर्मा “दॄष्टि” पिता :- श्री शांतीलालजी वर्मा
जन्म तिथि :- २ – मई -१९६२ (उज्जैन )
शिक्षा :- आय टी आय
व्यवसाय :- ड़ी एम (जल संसाधन विभाग )
प्रकाशन :- देश – विदेश की विभिन्न पत्र – पत्रिकाओं में रचनाएँ व समाचार पत्रों में निरंतर पत्र और रचनाओं का प्रकाशन, प्रकाशित काव्य कृति “दरवाजे पर दस्तक “, खट्टे मीठे रिश्ते उपन्यास कनाडा -अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर विश्व के ६५ रचनाकारों में लेखनीयता में सहभागिता भारत की और से सम्मान – २०१५ , अनेक साहित्यिक संस्थाओं से सम्मानित
संस्थाओं से सम्बद्धता :- शब्दप्रवाह उज्जैन, यशधारा – धार, मगसम दिल्ली,
काव्य पाठ :- काव्य मंच/आकाशवाणी/ पर काव्य पाठ, शगुन काव्य मंच

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