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जितेंद्र शिवहरे
महू (इंदौर)
मुख्य बाजार की सड़क से गुजरना हुआ। वहीं कुछ दूरी पर लोगों की भीड़ जमा थी। सड़क के इर्द-गिर्द बहुत से लोग खड़े थे। सभी की आखें नीचे सड़क पर थी। मुझे भी उत्सुकता हुई। मैंने वहां भीड़ के नजदीक जाकर देखा। सड़क के बीचों-बीच एक गहरा गढ्ढा हो गया था। राहगीर जैसे-तैसे बचते बचाते निकल रहे थे। दो पहिया वाहन तो गढ्ढे के आसपास से निकल जाते मगर चार पहिया वाहन युं ही सड़क की दोनों ओर पंक्ति बध्द खड़े थे। चार पहिया वाहन स्वामियों को अमिट विश्वास था कि कोई न कोई उस गढ्ढे को भरने अवश्य आयेगा। तब वे आराम से निकल जायेंगे। इसलिए वे निश्चिंत होकर अपनी-अपनी कार में बैठे थे। कुछ लोग गाड़ी से नीचे उतर कर सड़क किनारे भुट्टें की दुकानों पर टूट पड़े थे। मैंने साहस कर कहा- “अरे भाई कोई म्यूनिसिपल ऑफिस को फोन करो। वहां से कोई आयेगा तब ही पेंच वर्क शुरू होगा।” मेरी बात वहां सुनने वाला मेरे अलावा कोई नहीं था। लोग अभी-भी जानलेवा जोखिम उठाकर गढ्ढे के पास से निकल रहे थे। गढ्ढे के नीचे ड्रेनेज लाइन का पाइप अत्यधिक वर्षा के कारण धंस गया था। यह खतरनाक था क्योंकि धंस चूके पाइप ने अपनी जगह छोड़ दी थी। परिणामस्वरूप उससे सटकर लगे अन्य पाइप भी हिलने-डुलने लगे थे। शेष विखंडित सड़क भी धंसने की बांट जोह रही थी। एक जिम्मेदार नागरिक की भांति मैंने म्यूनिसिपल ऑफिस की ओर दौड़ लगा दी।
“सर जल्दी कीजिए! वहां मेन रोड पर बड़ा भारी गढ्ढा हो गया है। लोग परेशान हो रहे है। कभी भी कोई हादसा हो सकता है।” मैं वहां पहुंचते ही बोला।
“अरे जरा भई जरा ठहरो! कुछ देर सांस तो ले लो।” ऑफिस में शिकायत निवारण अधिकारी बोल रहे थे।
“मगर विलंब करना खतरनाक हो सकता हो सर!” मैंने अधीर होकर कहा।
“खतरा कहां नहीं है भाई? आज कहीं कोई सुरक्षित नहीं है।” अधिकारी ने कहा।
इतना कहते हुये वो फाइलें उलटने-पलटने लगे।
“आप समझ नहीं रहे है। वह सड़क शहर की व्यस्ततम सड़क है। हजारों वाहनों की आवाजाही वहां रोज है।” मैं अपनी बात का वजन बढ़ाने की कोशिश कर रहा था।
“ठीक है, ठीक है! गढ्ढे की वास्तविक लोकेशन बताईये।” शिकायत निवारण अधिकारी ने पुछा।
“हनुमान मंदिर से थोड़ी दूरी पर शापिंग काम्पलेक्स के ठीक पास मेन रोड पर।” मैंने कहा।
“गढ्ढा कितना बड़ा है? कोई फोटो, वीडियो हो तो दिखाओ।” अधिकारी बोले।
“नहीं हैं सर।” मैंने कहा।
“कैसे जागरूक नागरिक हो यार तुम। शिकायत करने आये हो वो भी बिना सबूत के? हम कैसे मान ले कि तुम जो कह रहे हो वह सही है?”
अधिकारी ने कहा।
“सर आप स्वयं चल के देख लिजिए।” मैंने कहा।
“अरे वाह ! वहां जाकर अगर कुछ न निकला तब मेरा और सरकारी मशीनरी का कितना दुरूपयोग होगा?” अधिकारी बोले।
मेरी किसी भी विनती का उन पर कोई असर नही हो रहा था। मैं मजबूरन घटना स्थल की ओर भागा। सड़क मार्ग पर बने गढ्ढे की फोटो, वीडियो ली और पुनः म्यूनिसिपल ऑफिस आ गया।
“देखिये सर! कितना बड़ा गढ्ढा हो गया है उस सड़क पर!” मैंने अधीर होकर अपना मोबाइल फोन अधिकारी के आगे कर दिया।
“यार शर्मा! ये तो वही जगह दिख रही है जहां कुछ दिनों पहले टेलीफोन विभाग ने खुदाई की थी?” अधिकारी ने अपने सहायक कर्मचारी शर्मा से पुछा।
“हां सर! यह तो वहीं स्थान है?” शर्मा जी आश्वस्त थे।
“इसका अर्थ है कि टेलीफोन विभाग ने खुदाई के उपरांत सड़को की ठीक से मरम्मत नहीं की।” मुख्य अधिकारी ने शंका जाहिर की।
“हां सर! तब तो यह पेच वर्क उन्ही के द्वारा होगा।” शर्मा बोले।
मेरा सिर चकरा रहा था। ऑफिस जाने के लिए मैं पहले ही बहुत लेट हो गया था।
“सर आप जरा जल्दी करे। वह गढ्ढा भरवाईये। मुझे ऑफिस के लिए लेट हो रहा है।” मैं पुनः बोला।
“अरे भाई। अब यह मामला हमारे विभाग का नहीं है। दरअसल टेलीफोन विभाग ने वहां खुदाई की थी। पेज वर्क उन्होंने ठीक से नहीं करवाया। जिससे वहां गढ्ढा दोबारा हो गया। अब यह पेच वर्क उनके डिपार्टमेंट से दोबारा करवाने का दबाव बनाना होगा। उसमें समय लगेगा।” अधिकारी बोले।
“कितना समय लगेगा?” मैंने पुछा।
“यही हफ्ता दस दिन?” शर्मा बोले।
“लेकिन तब तक उस गढ्ढे में कोई गिर गया, कोई जनहानि हो गई तो उसका जिम्मेदार कौन होगा।”
मुझे अब गुस्सा आ रहा था।
“आप गुस्सा न करे महोदय। यही सरकारी तौर-तरीके है। काम तो ऐसे ही होगा।” अधिकारी बोले।
“कम से कम उस गढ्ढे के आसपास बेरीकेड्स तो लगवा देवे।” मैं बोला।
“हां यह काम हो जायेगा।” अधिकारी बोले।
“शर्मा! वो पन्द्रह दिन पहले एम जी रोड पर जिस गढ्ढे के आसपास हमने बेरीकेड्स लगवाये थे, उन्हें वहां से उठवाकर इनके द्वारा बताये गये गढ्ढे के आसपास लगवा दो।” अधिकारी बोले।
“लेकिन सर! वहां के गढ्ढे से बेरीकेड्स हटवा देंगे तो वहां परेशानी खड़ी हो जाएगी।” मैं बोला।
“कोई परेशानी खड़ी नही होगी। एमजी रोड से निकलने वाले लोगों को अब उस गढ्ढे की लोकेशन याद हो गयी होगी। अब वे लोग उस गढ्ढे से बचते-बचाते निकलने के अभ्यस्त हो चूके होंगे।” शर्मा ने तर्क दिए।
“आप निश्चिंत होकर अपने ऑफिस जावे। कल शाम तक मेन रोड पर गढ्ढे के आसपास बेरीकेड्स लगा दिये जायेंगे।” अधिकारी बोले।
“कल शाम तक! मगर सर यह तो तुरंत होना चाहिए।” मैं बोला।
“देखो भाई। पहले बड़े साहब से परमिशन लेनी होगी। फिर मजदूर बुलाने होंगे। टेम्पो में बेरीकेड्स लाने होंगे। इन सब में समय तो लगेगा।” अधिकारी ने कहा।
“तब क्या कल शाम तक वह गढ्ढा युं ही खुला पड़ा रहेगा?” मैंने अधिकारी से पुछा।
“आप एक काम करे। उस गढ्ढे के आसपास घास-फूस और झाड़ीयां लगवा देवे। अब इतना काम तो आप कर ही सकते है?” अधिकारी इतना बोलकर अन्य काम में व्यस्त हो गए।
मैं विवश होकर पुनः गढ्ढे की ओर चल पड़ा। अब उसे घास-फूस और झाड़ियों से ढकना जो था।
परिचय :- नाम – जितेंद्र शिवहरे आपकी आयु – ३४ वर्ष है, इन्दिरा एकता नगर पूर्व रिंग रोड मुसाखेड़ी इंदौर निवासी जितेंद्र जी शा. प्रा. वि. सुरतिपुरा चोरल महू में सहायक अध्यापक के पद पर पदस्थ होने के साथ साथ मंचीय कवि भी हैं, आपने कई प्रतिष्ठित मंचों पर कविता पाठ किया है।
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