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नदी और नारी

अनुराधा बक्शी “अनु”
दुर्ग, छत्तीसगढ़

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निश्छल नदी में अक्सर लोग पाप धोने आते हैं।
आस्था के नाम पर गंदा कर चले जाते हैं।
उसकी पवित्रता को दिल में रख कर देखना।
कभी जलजला, कभी किनारे मंदिर बन जाते हैं।
स्त्री और नदी दोनों की पवित्रता में है समानता।
दोनों के गर्भ गृह में सृष्टि का स्पंदन होता।
नदी भी सृजन करता स्त्री भी सृजन करता।
इनकी अमृतधारा पावन करती धरा।
इनकी बाहों में अठखेलियां करते गौतम राम कृष्ण।
इनके पावन तट पूजे जाते कौन हो इनसे उऋण।
नारी से नर बना, नदी में नर तर जाते।
नदी और नारी भक्ति का एक रूप कहलाते।
दोनों की गहराई में उतरकर ही इन्हे पाया जाता है।
इन दोनों का सम्मान करने वाला ही पूजा जाता है।
इनके पावन चरणों में जीवन सुगम सुहाने हो जाते हैं।
ऋषि मुनि पावन धरा पर इनकी वजह से पूजे जाते हैं।
स्वयं को इनमें अर्पण कर दो।
नदी को पूजो, नारी में समर्पण कर दो।
नारी में समर्पण कर दो।

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परिचय :- अनुराधा बक्शी “अनु”
निवासी : दुर्ग, छत्तीसगढ़
सम्प्रति : अभिभाषक
मैं यह शपथ लेकर कहती हूं कि उपरोक्त रचना पूर्णतः मौलिक है।


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