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नदी

नदी

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रचयिता : रीतु देवी

कलकल बहती है निरंतर नदी,
पावन नव संदेशा दे होती अग्रसर नदी।
स्वार्थहीन दिशा में बहती रहती,
अपने तट स्वर्ण फसल दे निहाल करती रहती।
कराती रहती पूजनीया मधुर संगीत श्रवण,
मनोकामनाएं पूर्ण कर लेते करके तट किनारे अर्चन।
सिख लेकर नेक राह बढाए कदम,
अपनी जिंदगी सेवाभाव में अर्पित करें हम।
रखें पवित्रता का ख्याल इसकी हरदम,
हाथ में हाथ मिला न होने दे जीवनदायी अक्षुण्णता कम।

 

लेखीका परिचय :- 
नाम – रीतु देवी (शिक्षिका) मध्य विद्यालय करजापट्टी, केवटी दरभंगा, बिहार

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