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रिश्तो की रस्सियां

चेतना ठाकुर
चंपारण (बिहार)

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न जाने कितने रिश्तो की रस्सियां,
मेरी तरफ है आ रही।
बचपने की गिरह खोल,
एक लड़की दुल्हन बनने जा रही।
अरमानों की डोली सजाती
सपनों में मुस्कुरा रही।
सब कुछ होगा अच्छा
यह दिल को समझा रही।
सभी बड़े उस नन्ही सी जान
को अपनी-अपनी समझ समझा रहे हैं।
गीत और संगीत में भी
कर्तव्य व ज्ञान गाए जा रहे हैं।
उबटन लगाकर तन व ज्ञान
देकर मन संवारा जा रहा है।
एक लड़की दुल्हन के
ढांचे में ढ़ाली जा रही है।
शादी तक ये दुल्हन
तैयार होनी चाहिए।
एक में ही सुंदरता संस्कार
प्रतिभावान यह सभी गुण
विद्यमान होने चाहिए।
घबराए मुस्कुराए
सब को ये कैसे बताए।
आधी उम्र गुजर गई आप
सभी को अपनाने में,
आधी उन गैरों को
अपना बनाने में।
पता ही नहीं चलता
हमें हमारा वजूद,
इस जमाने में।

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लेखक परिचय :-  नाम – चेतना ठाकुर
ग्राम – गंगापीपर
जिला –पूर्वी चंपारण (बिहार)


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