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घर वापसी

जितेन्द्र गुप्ता
इंदौर (मध्य प्रदेश)

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हिन्दी रक्षक मंच द्वारा आयोजित अखिल भारतीय लघुकथा लेखन प्रतियोगिता में चतुर्थ विजेता (प्रोत्साहन) रही लघुकथा

“अरे चलो, चलो जल्दी!” हंसते खिलखिलाते वे किशोर फटाफट अपने बेग्स लेकर उस एसी बस में चढ़ने लगे!
सबके सब दुसरे स्टेट के रहने वाले थे और पढ़ाई के लिए इस शहर में रह रहे थे मगर महामारी के कारण लगे लॉक डॉउन में फंस गये थे। इनकी सुरक्षित घर वापसी हेतु एसी बसें लगाई गई थी। उनको रास्ते में खाने हेतु लंच पैकेट और पानी बोतलें भी थी। सभी हंसते, बतियाते, जा रहे थे।
“अरे, देखो, देखो जरा!” सुमित ने जोर से कहा।
पचासों पुरूष, महिलाएं सामान उठाये और बच्चों को गोद में या कंधे पर बैठाये सड़क किनारे-किनारे चले जा रहे थे। पसीने से लथपथ, थके-थके…।
“बेचारे…….” उनमें से एक किशोर अकड़ से बोला, “अरे मेरे पापा ने तो अपनी युनियन के द्वारा एड़ी चोटी का जोर लगा दिया था हमें घर वापस लाने के लिए।”
“हां और मेरे चाचा जी के भी बड़े-बड़े संपर्क है। उन्होंने भी जोर लगा दिया था सब तरह से।” दुसरे किशोर ने कहा।
ड्रायवर रामप्रसाद के कानों में उनकी सारी बातें पड़ रही थी। उसका बेटा महेश भी महाराष्ट्र में किसी फैक्ट्री में काम करता था। उसकी बहुत चिंता थी उसे।
“ट्रिन……ट्रिन…..!”
महेश का ही फोन था।
“हां बेटा ! क्या फैक्ट्री बंद हो गई! मालिक ने कुछ पगार दे दी। खाने पीने की दिक्कत हो गई तो पैदल ही निकल पड़ा घर के लिए ओह …. ! अपना ध्यान रखना बेटा। ध्यान से आना।” रामप्रसाद की आंखों में चिंता गहरा गई।
पैदल लौटते मजदुरों में उसे अब अपने बेटे की सूरत नज़र आ रही थी।

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परिचय :- जितेन्द्र गुप्ता
निवासी : इंदौर म.प्र.


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