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बैचेन मन…

राजीव रावत
भोपाल (मध्य प्रदेश)
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दिल की आह से-
खोजती हैं नजरें किसे सूनी निगाह से-
अतृप्त सी अभिलाषा
मिलन की उत्कंठा लिए कौंधती सी आशा-

निस्तब्ध सा
खड़ा समय भी विचित्र है-
दिल के कैनवास पर उभरता सा चित्र है-
बांदलों की
ओट से झांकता चांद सा-
मन का मयूर भी हर आहट पर नाचता-

अधर भी
कांपते न जाने क्यों मौन हैं-
तू भी चुप, मैं भी चुप,
आहिस्ता दिल मे फिर बोलता सा कौन है-

न जाने क्यों
छिन गया दिल का सुकून है-
किसी की चाहत का कैसा ये जूनून है-
दिल की दिल से
कैसी यह अनुरक्ति है-
चाहत की धार भी रौके नहीं रूकती है-

दिल के
मिलन की अजीब सी ये रीति है-
दिल तो अपना है पर दूसरे की प्रीति है-
धड़कनें
धड़कती, चलती जो श्वांस है-
उनको भी किसी के आने की आस है-
अपना भी
अपने पर रहता कहां अधिकार है-
शायद यही कहलाता शास्वत् प्यार है-

बारिश की
बूंदे हिय को जलातीं है-
बन कर पपीहा सा पीहू-पीहू बुलातीं है-
कटती
सुबह नहीं, न कटती ये रैन है-
प्रेम में अग्नि में जलता मन बैचेन है-

परिचय :- राजीव रावत
निवासी : भोपाल (मध्य प्रदेश)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।


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