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नारी का सम्मान

पुजा गुप्ता
बुढार (शहडोल)

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मुझे कुछ करना है, आत्म निर्भर बनना है।२
घर को खुब सज़ा लिया है।२
अब खुद को साबित करना है।
मुझे कुछ करना है, आत्म निर्भर बनना है।

कैसे-
तुम यहां मत जाना, तुम वहां मत जाना।२
बचपन से टोका जाता है।
तुम दो घर की इज्ज़त हो,
बस यही तो सिखाया जाता है।

बस हमारे पास आस है।२
मुझे कुछ करना है, आत्म निर्भर बनना है।

सब रोक टोक सह के मै आज ससुराल को चली।२
मायके की इज्ज़त सम्भाल के,
ससुराल की इज्ज़त बनाने चली।

हो गई बेटी पराई-२
उसे भी कुछ करना है, आत्म निर्भर बनना है।
मुझे कुछ करना है, आत्म निर्भर बनना है।

किचन से लेकर बेडरूम तक,२
तुमने अपना हर काम निभाया है।
पर-
पर वाह रे नारी अपना सम्मान नही बना पाया है।

देके उनको चिराग उनका,२ यह तुमने जतलाया है।
कमी नहीं तुम्हारे कोख में,२ बस यही तो बतला पाया है।

हां अब हमें इन सब से निकलना है,
आत्म निर्भर बनना है।
मुझे कुछ करना है आत्म निर्भर बनना है।

तुम से नहीं होगा, तुम नहीं कर पाओगी।
बस यही कहा जाता है।
जब एक पैसे कि मांग करो,
तो खुद कमा कर देखो तब पता चलेगा,
यही सुनाया जाता है।

किचन से लेकर हर कला जिसके अन्दर भरी होती है,२
उसे ही तो चार दिवारी के अन्दर रखा जाता है।

वाह रे समाज २ लड़के के कला पे ताली,
और लड़की के कला पे गाली।
बदल दो ये रिवाज,२ तोड़ दो ये रस्में।
नहीं तो जिसपे ये सृष्टि टिकी है, वह टुट जायेगी।

निकल ऐ नारी सारे रस्में रिवाज तोड़ के,२
तुझे भी खुद को साबित करना है, आत्म निर्भर बनना है।
मुझे कुछ करना है, आत्म निर्भर बनना है।

रहती हुं सकुचाई सी, सहमी-सहमी रहती हुं।२
है कुछ भी कर गुजरने की हिम्मत,२
फिर भी डरी-डरी सी रहती हुं।
अब बस मुझे भी उभरना है, २आत्म निर्भर बनना है।
मुझे भी कुछ करना है, आत्म निर्भर बनना है।२

परिचय :- पुजा गुप्ता
निवासी : बुढार (शहडोल)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।

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