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सुकून की नींद

भूपेंद्र साहू
रमतरा, बालोद (छत्तीसगढ़)
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चिंताओं के जूतों को दहलीज पे उतार
होठों में एक प्यारी सी मुस्कान लेके
कर चौखट पार
गुजरते हुए खुशियों के लम्हों को
अपनी खिड़की से पुकार
घर में रख एक ऐसा छोटा सा कोना
जहां तू अपनी दिल की बाते
दिमाग को सुना
वक्त के पिटारे से खुद के लिए,
कुछ लम्हें उधार ले
ये जिदंगी तेरी है
एक सुकून कि नींद ले।

अपनों का पेट भरने के लिए
अपना पेट काटता है
औरों कि रातें चमकाने के लिए
अपना दिन जलाता है
लेकिन अब बस,
चिंताओं को रख परे
परेशानियों को दूर हटा
बड़े इंतजार के बाद आयी है
ये रात यूं ही ना टले
ये जिंदगी तेरी है
एक सुकून कि नींद ले

एक दिन मौत कि गोद में
सबको सुकून कि नींद आयेगी
फिर तो वक्त भी तुम्हे
ना जगा पाएगी
इससे पहले कि जिंदगी
मौत का खेल खेले
ये जिंदगी तेरी है
चल एक सुकून की नींद ले ले।।

परिचय :- भूपेंद्र साहू
पिता : श्री मोहन सिंह
निवासी : रमतरा, बालोद (छत्तीसगढ़)
घोषणा पत्र : मेरे द्वारा यह प्रमाणित किया जाता है कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।


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