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रिश्ते … 2

रुचिता नीमा
इंदौर म.प्र.
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रिश्ते तरह-तरह के
कुछ दूर के, कुछ पास के
और कुछ आसपास के

कुछ निभाए जाते है मिलकर
तो कुछ दूरभाष से है जीवित
कुछ रहते हमेशा साथ
भले ही उनमे न हो मिठास

अब क्या कहूं रिश्तों की परिभाषा
इन पर ही टिकी रहती सबकी आशा

जिस रिश्ते में जितनी आशा
अक्सर मिलती वही निराशा

जहाँ जितना अंध विश्वास
वही आ जाती है खटास

कुछ रिश्ते है बड़े रसीले
कभी है खट्टे कभी है मीठे

ऐसे रिश्तों से टिका परिवार सारा
इनके बिना न जीवन गुजारा

लेकिन एक रिश्ता है अटूट
जिसमे चलता कभी न झूठ
वो रिश्ता है आत्मा का परमात्मा से
और अपना अपनी अंतरात्मा से

बस यही रिश्ता है अनमोल
अगर समझ सको इसका मोल

परिचय :-  रुचिता नीमा जन्म २ जुलाई १९८२ आप एक कुशल ग्रहणी हैं, कविता लेखन व सोशल वर्क में आपकी गहरी रूचि है आपने जूलॉजी में एम.एस.सी., मइक्रोबॉयोलॉजी में बी.एस.सी. व इग्नू से बी.एड. किया है आप इंदौर निवासी हैं।
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।


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