वीणा वैष्णव
कांकरोली
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जहां को दिखाने, रिश्ते ऐसे निभा रहे हैं।
नहीं रहा अपनापन, दिखावा कर रहे हैं ।।
झूठी मुस्कुराहट, चेहरे पे रख जी रहे हैं।
अपनों बीच, देखो वो बेगाने हो रहे हैं।।
रिश्ते खून के, औपचारिकता निभा रहे हैं।
स्वार्थ रख मन में, वो करीब आ रहे हैं ।।
जीवन में कैसा, परिवर्तन दौर आ रहा है।
भीड़ में भी, अब तन्हा जीवन जी रहे हैं ।।
रिश्ते दिल से नहीं, दिमाग निभा रहे हैं।
अपनों को आहत, मन मन खुश हो रहे हैं।।
वक्त भी देखो, अब वो करवट ले रहा है।
दिल से निभाए रिश्ते, वह खास हो रहे हैं ।।
दर्द में रिश्तो का, जब अहसास हो रहा है।
नहीं की कद्र, तन्हा खून आंसू रो रहे है।।
रिश्तो का महत्व, वो महसूस कर रहे है ।
अपनेपन अनमोल निधि, सहेज रहे है।।
गैरों में पागल बने, अब अपनों को ढूंढ रहे हैं।
कांख छोरा गाँव ढिंढोरा, कहावत दोहरा रहे हैं।।
रिश्ते अहमियत, जिंदगी जन्नत बना रहे हैं।
शेष जीवन अपनों संग, सानंद बिता रहे हैं।।
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परिचय : कांकरोली निवासी वीणा वैष्णव वर्तमान में राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय फरारा में अध्यापिका के पद पर कार्यरत हैं। कवितायें लिखने में आपकी गहन रूचि है।
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