Sunday, September 22राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर आपका स्वागत है... अभी सम्पर्क करें ९८२७३६०३६०

पछ्तावा और सीख

कंचन प्रभा
दरभंगा (बिहार)

********************

(हिन्दी रक्षक मंच द्वारा आयोजित अखिल भारतीय लघुकथा लेखन प्रतियोगिता में प्रेषित लघुकथा)

मेरी सहेली गितिका अपने यादों में खोई छत की मुंडेर पर बैठी थी अचानक मुझे वहां देख कर चौंक गई। मैनें पुछा ‘क्या हुआ गितिका तुम चौंक क्यो गई’ और मैनें उसकी आँखो में आंसु देखे। फिर से उसे अपनी जिन्दगी के वो मनहूस पल याद आ रहे थे जब उसके अनुसार उसके जीवन का अन्त हो गया था शायद इस लिये उसके आँखो में आंशु दिख रहे थे।
गितिका मेरे साथ कॉलेज में पढ़ती थी। काफी बाचाल थी हमेशा हँसते रहना उसकी पहचान थी। कॉलेज में भी वो सबकी चहेती थी। उसके इसी हंसमुख स्वभाव के कारण कॉलेज का एक लड़का मयंक उसे चाहने लगा। कॉलेज खत्म हो गई दोनों अपने अपने घरवालों से बात की और हाँ हो गई। दोनों के परिवार बहुत अच्छे थे। काफी धूम-धाम से दोनो की शादी हो गई। नये घर मे जा कर गितिका काफी खुश थी । अपने ससुराल वालों का पूरा ध्यान रखने लगी। उसे कॉलेज के दिनो से घर सजाने का बहुत शौक था।मयंक ने एक दिन उससे कहा कि क्यो ना तुम अपना पुराना शौक को और निखार लेती हो। उसने भी सोचा कि ठीक ही है क्यो ना मै होम डेकोरेशन का कोर्स कर लूं फिर उसमे नौकरी भी मिल सकती है। फिर गितिका ने होम डेकोरेशन का कोर्स किया। इसी बीच उसे दो नन्हे-नन्हे जुड़वां बच्चे हुए। एक लड़का और एक लड़की। मयंक और गितिका काफी खुश थे। दोनो को बच्चो से काफी लगाव था और भगवान ने उनके नसीब मे एक साथ दो-दो प्यारे-प्यारे बच्चे दे दिये। परिवार मे भी सब खुश थे। उनकी जिन्दगी अच्छी चल रही थी। बच्चे अब स्कूल जाने लगे थे। गितिका को भी होम डेकोरेशन की नौकरी मिल गयी थी। सुबह सात बजे बच्चो को तैयार करती और मयंक दोनो को स्कूल बस तक छोड देता। फिर खुद ऑफ़िस जाता। गितिका भी तैयार होती और स्कूटी से अपने ऑफ़िस चली जाती। बच्चो और मयंक के घर आने का समय एक ही था इसलिये मयंक लौटने समय बच्चो को खुद ही ले आता था। इसी तरह जीवन की गाड़ी आगे बढ़ रही थी।
एक दिन पहले की तरह सब लोग तैयार हुए फिर मयंक बच्चो को छोर कर वापस आया और नाश्ता कर के ऑफ़िस चला गया। गितिका भी जल्दी-जल्दी तैयारी कर घर से निकली। कुछ ही दूर जाने के बाद एक चौक था। चौक पर पहुंची थी कि उसकी स्कूटी किसी चीज से टकराया। उसने ज्यादा ध्यान नही दिया और आगे बढ़ गई। पर आगे जाने पर अचानक उसे याद आया कि जो वस्तु उसके स्कूटी से टकराई थी वो क्या थी? शायद उसकी बनावट एक बम के जैसी थी पता नही, ये मेरा वहम था। बम यहाँ कैसे आ सकता है इस चौक पर तो हमेशा पुलिस रहती है। खैर इसी उधेड बुन में वो ऑफ़िस पहुँच गई और काम में लग गई।
शाम हुई पाँच बजे वो घर के लिये निकली। जब वो उस चौक के पास पहुँची तो देखा लोग भाग दौड़ कर रहे थे कई लोग खुन से लथ-पथ थे। उसके पैर तले की जमीन खिसक गई। उसे आभास होने लगा कि शायद ये उसी बम का असर तो नही। पास ही एक महिला से उसने पूछा तो उसका शक सही निकला। उसे बहुत ज्यादा अफसोस होने लगा मन ही मन रो रही थी और सोच रही थी कि काश उस समय मैं पुलिस को बता देती तो सायद इतना नुकसान नही होता। यही सोचते-सोचते वो घर पहुँची पर ये क्या मकान के गेट पर काफी भीड़ थी लोग आपस मे बातें कर रहे थे। उसे समझ नहीं आ रहा था कि ये क्या हो रहा है। उसने स्कूटी वहीं खड़ी की और दौड़ कर गेट के अंदर आई तो देखा कि दो लाश सफेद चादर में लिपटे थे। उसकी सासु माँ दौड़ कर आई और गितिका को पकड़ कर फुट-फुट कर रो पड़ी। उसके ससुर जी भी पास आ कर बोले कि ”चौक पर एक बम विस्फोट हुआ है उसी समय मयंक दोनों बच्चों को ले कर घर आ रहा था तो ये सब”—और वो भी फफ़क-फफ़क कर रो पड़े। गितिका के होश उड़ गये थे । वो सन्न रह गई थी।
तब से आज तक वो इस घटना के लिये खुद को ही जिम्मेदार मानती है।

संदेश— कभी भी कोई अंजान वस्तु अगर सड़क पर दिखे जिस पर जरा भी शक हो तो तुरंत पुलिस को खबर करनी चाहिये।

.

परिचय :- कंचन प्रभा
निवासी – लहेरियासराय, दरभंगा, बिहार
सम्मान – हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिन्दी रक्षक २०२० राष्ट्रीय सम्मान से सम्मानित 

आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.com पर अणु डाक (मेल) कीजिये, अणु डाक करने के बाद हमे हमारे नंबर ९८२७३ ६०३६० पर सूचित अवश्य करें … और अपनी कविताएं, लेख पढ़ें अपने चलभाष पर या गूगल पर www.hindirakshak.com खोजें…🙏🏻

आपको यह रचना अच्छी लगे तो साझा जरुर कीजिये और पढते रहे hindirakshak.com हिंदी रक्षक मंच से जुड़ने व कविताएं, कहानियां, लेख, आदि अपने चलभाष पर प्राप्त करने हेतु हिंदी रक्षक मंच की इस लिंक को खोलें और लाइक करें 👉🏻  hindi rakshak manch 👈🏻 … हिंदी रक्षक मंच का सदस्य बनने हेतु अपने चलभाष पर पहले हमारा चलभाष क्रमांक ९८२७३ ६०३६० सुरक्षित कर लें फिर उस पर अपना नाम और कृपया मुझे जोड़ें लिखकर हमें भेजें…

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *