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काली घटाएं

शरद सिंह “शरद”
लखनऊ

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घिरी है घटाऐ उमड़ घुमड़ बरसे गगन,
भिगो गया आँचल मेरा भिगो गया तन मन,
पहन चुकी बाना हरित हर तरु की डाली डाली
हरित तृन की बिछी धरणी पर चादर मखमली,
इन्द्र धनुषी आभा अम्बर मे छाई है।
पी कहाँ पी कहाँ की रट पपिहा ने लगाई है
चहक चहक उठती है गौरैया घोसलो में,
चूँ चूँ चीं चीं की रट उसने लगाई है।
देखो वह राम श्याम ,भोला हरि की टोली
किलोले करते है कैसी कैसी अमराई मे,
वन वन करे नृत्य मयूरा मयूरी संग
झीगुर दादुर की धुन चहुँ ओर छाई है।
नख से शिख तक भीग गयी हर गोरी,
आज इस बदरा ने लालसा जगाई है,
आओ श्याम हम तुम रास करे वृन्दावन मे,
वृज की हर गोपी ने टेर लगाई है।

परिचय :- बरेली के साधारण परिवार मे जन्मी शरद सिंह के पिता पेशे से डाॅक्टर थे आपने व्यक्तिगत रूप से एम.ए.की डिग्री हासिल की आपकी बचपन से साहित्य मे रुचि रही व बाल्यावस्था में ही कलम चलने लगी थी। प्रतिष्ठा फिल्म्स एन्ड मीडिया ने “मेरी स्मृतियां” नामक आपकी एक पुस्तक प्रकाशित की है। आप वर्तमान में लखनऊ में निवास करती है।


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