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पहचान

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केशी गुप्ता (दिल्ली)

सुहासनी  प्रातः चार बजे ही उठ गई  .  आज उन्हे मां का नाम लिखवाने पेहोवा जो जाना था . महीना भर हुआ मां का स्वर्गवास हुए .   यूं तो कई रातों से वह ठीक से सो नही पा रही थी .   उसका अपनी मां से रिश्ता ही बहुत गहरा था .  मगर संसार का अपना नियम है .  एक वक्त पर  अनचाहे वो व्यक्ति भी चला जाता है , जिसके बिना आपको लगता है जीना मुशिकल है .  पापा और मोहन जो उसके मामा का लड़का है ने पेहोवा जो कुूरूक्षेत्र के नजदीक है,  साथ जाना था .  सुहासनी नहा धोह कर तैयार हो पापा के साथ पेहोवा के लिए निकल पड़ी .  मोहन का घर रास्ते में पडता था , तो उसे ऱास्ते से ही ले लिया . “आदमी चला जाता है और रस्में रह जाती है ” सुहासनी ने  भराई हुई आवाज में कहा . मैं तो जाना नही चाहता था , पापा बोले .  हमारे यहां ऐसा कोई रिवाज नही है .  हां मगर पंडित जी ने कहा जाना चाहिए .  पंडित जी जिन्हे मां अपना भाई मानती थी और बेहद विश्वास करती थी .  यूं भी मां की तरफ तो ये रिवाज था .मोहन बोला मै अपने डैडी मम्मी के समय भी गया था .
रिवाज के मुताबिक व्यक्ति के स्वर्गवासी होने के बाद वहां उसका नाम लिखवाया जाता है , जिसमें उस खानदान के सभी नाम होते हैं , पीड़ी दर पीड़ी .  यूंही बाते करते सफर तय हो गया .   पेहोवा पंहुच कर वंहा के पंडितो ने मां के मोक्ष के लिए रस्म मुताबिक पूजा करवाई जिसमें पापा को बैठना था क्योंकी इस पूजा में वही व्यक्ति बैठता है जो संस्कार करता है . पापा ने सुहासनी को आवाज लगाते हुए कहा , सुहासनी तुम भी साथ बैठो . सुहासनी पापा के साथ पूजा में बैठ गई क्योंकि वह मां के  बेहद करीब थी .  मां ने हमेशा उसे बेटे जैसे ही देखा . सुहासनी ने संस्कार में मां को कंधा भी दिया और पिता के साथ अग्नि भी दी . पेहोवा आने का आग्रह भी उसी का था  वह मां की अंतिम यात्रा का कोई रिवाज छोड़ना नही चाहती थी .  खैर पूजा समाप्त होने के बाद नाम लिखने का कार्य होना था . पापा के गोत्र के मुताबिक़ ही वहां के पंडित को पूजा एंव  मां का नाम  पोथी में लिखना था . अब वही हुआ पापा के तरफ ये रिवाज ना होने से वह रिकार्ड मिल नही पा रहा था . कुछ वह पंडित भी लालची था .  इतनी दूर आने के बाद बिना नाम लिखवाए वापिस लौटने का सुहासनी का मन नही था .  पापा इन्हे बोलो नानी की तरफ मां का नाम लिख दें .  तभी पंडित बोल पड़ा ऐसा नही होता पत्नी का अपना कोई गोत्र नही होता .  पति के गोत्र के मुताबिक ही पत्नी का नाम लिखा जाता है .  सुहासनी मुस्कुरा उठी और बोली ये कैसी परंम्परा है क्या शादि होने से मायके से उसका नाम मिट जाता है . उसने मोहन की ओर देखते हुए कहा तू इन्हे अपना गोत्र बता जिसमें नानी और मामा जी का नाम लिखवाया था . हम उसी में मां का नाम लिखवा के जांएगे .  पहले पापा बोले रहने दो मैं तो पहले ही मना कर रहा था मगर फिर सुहासनी के आग्रह पर राजी हो गए .
नाम लिखवा सब वापसी के लिए निकल पड़े मगर  सुहानी सोच रही थी  कि ये कैसी व्यवस्था और रिवाज है जिसमें औरत की अपनी कोई पहचान नही , वह औरत जो जननी है , पैदा होने से लेकर मरण उपरांत तक अपनी पहचान से वंचित रहती है .  क्यों उसे उस कुल से अलग कर दिया जाता है जिसमें वह पैदा होती है .  आखिर क्यों उसकी अपनी पहतान नही?

लेखक परिचय :- केशी गुप्ता लेखिका, समाज सेविका
निवास – द्बारका, दिल्ली


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