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ज़िन्दगी की हकीकत

दामोदर विरमाल
महू – इंदौर (मध्यप्रदेश)

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असमंजस में कट रही है जिंदगी खुदपे करूं
यकीन या दुनिया को गलत समझूं।

बड़ी बेरहम है दुनिया समझ नही आता
मैं खुदको बचाऊँ या गैरो का साथ दूं।

हर दिन हो रहा है गुनाह हाथों से मेरे में
खुदको आजकल बड़ा समझने लगा हूँ।

क्या हक है मुझे किसी का दिल दुखाने का
क्या मेरे अंदर इंसानियत नही है।

अकेला था तो खुश था शामिल हुए कुछ और
तो ज़िम्मेदारी का सफर शुरू हुआ।

जितनी भी ली सुविधा उतनी हुई दुविधा क्या
इरादे मेरे नेक नही थे या में काबिल नही था।

बड़े यकीन के साथ निकलता हूँ घर से
की आऊंगा लेकर सबका सामान।

उम्मीदों और ख्वाइशों से भरा पड़ा है
मेरा मकान नही देखना उनको मेरी थकान।

आजमाने चला हूँ मै उनको आजकल
जो पीठ पीछे मुझे कुछ मानते ही नही।

और तारीफें कर रहे है वो मेरी जमाने भर में
जो मुझे कभी जानते ही नही।

क्या दुनिया है ये जिसको देखो वो अपना
फायदा ढूंढता है एक दूजे का भला देखता है।

में तेरा हूँ तू मतकर फिकर में तेरे साथ हूँ,
बड़ी बड़ी बातें करता है इंसान कितना फेकता है।

फितरती दुनिया की परख कर चुका हूँ
यारो हाथ कुछ आया नही गद्दारी के सिवा।

बस रखो अपने काम से मतलब कोई कुछ भी करे
नज़र अंदाज़ करो सबकी गलती।

खुदके अंदर झांक के देखो हम कितने ईमानदार है
कितने है वफादार कितने है खुद्दार।

या इस दुनिया की तरह है बेवफा गुनाहगार
बेईमान या फिर हो चले है गद्दार।

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परिचय :- ३१ वर्षीय दामोदर विरमाल पचोर जिला राजगढ़ के निवासी होकर इंदौर में निवास करते है। मध्यप्रदेश में ख्याति प्राप्त हिंदी साहित्य के कवि स्वर्गीय डॉ. श्री बद्रीप्रसाद जी विरमाल इनके नानाजी थे। हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिन्दी रक्षक सम्मान एवं आपके द्वारा अभी तक कई कविताये, मुक्तक, एवं ग़ज़ल व गीत लिखे गए है, जो आये दिन अखबारों में प्रकाशित होते रहते है।  गायन के क्षेत्र कराओके गीत गाने में आप खासी रुचि रखते है।


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